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मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023

भूमिका

राज्य सभा में 10 अगस्त, 2023 को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 प्रस्तुत किया गया। 12 दिसंबर, 2023 को राज्य सभा द्वारा इस विधेयक को पारित किए जाने के साथ ही लोक सभा द्वारा भी इसे पारित कर दिया गया। तत्पश्चात 28 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करने के उपरांत यह अधिनियम बन गया। यह एक अत्यंत विवादास्पद अधिनियम है जिसका मुख्य उद्देश्य मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्तों, पदावधि एवं पदच्युति, और निर्वाचन आयोग द्वारा कारबार के संव्यवहार के लिए प्रयुक्त की जाने वाली पद्धति आदि को नियंत्रित करना है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए, एक खोजबीन समिति और एक चयन समिति का गठन किया जाएगा, जो पूर्वोल्लिखित क्रियाकलापों को अधिक पारदर्शी बनाने हेतु प्रक्रिया बनाएंगी। यह अधिनियम निर्वाचन आयोग (निर्वाचन आयुक्त सेवा शर्त और कारबार का संव्यवहार) अधिनियम, 1991 को प्रतिस्थापित करता है।

प्रमुख उपबंध

  • निर्वाचन आयोग: 2023 के अधिनियम के अनुसार, भारत का निर्वाचन आयोग (ईसीआई) मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों से मिलकर बनेगा। निर्वाचन आयुक्तों की संख्या भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियमित अंतराल पर नियत की जाएगी।
  • आयोग की नियुक्ति: अधिनियम यह उपबंध करता है कि राष्ट्रपति, चयन समिति, जो प्रधानमंत्री, संघ के एक कैबिनेट मंत्री, और नेता प्रतिपक्ष अथवा लोक सभा में सबसे बड़े एकल विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनेगी, की सिफारिश पर आयोग की नियुक्ति करेगा। खोजबीन समिति, जिसमें अध्यक्ष के रूप में विधि एवं न्याय मंत्री तथा भारत सरकार के सचिव के रैंक से अन्यून दो अन्य सदस्य शामिल होंगे, द्वारा चयन समिति को पांच नाम अनुशंसित किए जाएंगे। हालांकि, चयन समिति किसी भी व्यक्ति, खोजबीन समिति द्वारा अनुशंसित नामों से भिन्न, पर विचार कर सकेगी। चयन समिति में किसी रिक्ति के बावजूद इसकी सिफारिशें विधिमान्य होंगी।
  • अर्हता मानदंड: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के रूप में नियुक्त होने वाले व्यक्तियों को:
    1. सत्यनिष्ठ होना चाहिए;
    2. निर्वाचनों के प्रबंधन और संचालन के संबंध में सुविज्ञ तथा अनुभवी होना चाहिए; और
    3. भारत सरकार के सविच के समतुल्य रैंक के पद सेवा कर चुके हों।
  • पदावधि एवं पुनर्नियुक्ति: अधिनियम उपबंधित करता है कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष तक या पैंसठ वर्ष की आयु का होने तक, जो भी पूर्वतर हो, होगा। आयोग के सदस्यों के लिए पुनर्नियुक्ति की अनुमति नहीं है। किसी निर्वाचन आयुक्त के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किए जाने की स्थिति में, उसका संपूर्ण कार्यकाल केवल छह वर्ष हो सकता है, और न कि उससे अधिक।
  • वेतन और पेंशन: अधिनियम के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की सेवा शर्तें, वेतन और भत्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों के समान होंगे। हालांकि, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को यथा अनुज्ञेय महंगाई भत्ता प्राप्त करने के हकदार होंगे।
    यदि कोई व्यक्ति, मुख्य निर्वाचन आयुक्त अथवा किसी निर्वाचन आयुक्त के रूप में पद ग्रहण करने से ठीक पूर्व, किसी पूर्ववर्ती सेवा के लिए (निःशक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा था या प्राप्त करने का पात्र था, तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त या किसी निर्वाचन आयुक्त के संबंध में उसका वेतन उस पेंशन की रकम या उसे देय पेंशन के भाग की रकम से घटा दिया जाएगा। इसके अलावा, अधिनियम के अनुसार, उन्हें अपनी पूर्ववर्ती सेवा के लिए प्राप्त होने वाली पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करने की अनुमति होगी।
  • पदत्याग/पदच्युति: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के पदत्याग की प्रक्रिया, जैसा कि संविधान में निर्दिष्ट किया गया है, को यथावत रखा गया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उन्हीं आधारों और रीति से हटाया जाएगा, जिन आधारों और जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। हालांकि, अन्य निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा की गईं सिफारिशों पर ही उनके पद से हटाया जाएगा।
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों को प्रदत्त सुरक्षा: अधिनियम के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त अपने कार्यकाल के दौरान की गई कार्रवाइयों से संबंधित कानूनी कार्यवाहियों के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। परंतु उनके द्वारा की गई ऐसी कार्रवाइयां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए की गई होनी चाहिए। इस संशोधन का प्रयोजन इन अधिकारियों को उनके आधिकारिक कार्यों से संबंधित दीवानी या फौजदारी मामलों की कार्यवाहियों को शुरू करने के दायित्वों से सुरक्षा प्रदान करना है।

मुख्य मुद्दे एवं विश्लेषण

  • निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता में बाधा: संविधान के अनुसार, भारत के निर्वाचन आयोग को एक स्वशासी संस्था होना चाहिए, जिसका दायित्व स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन कराना है। संविधान सभा के सदस्यों का भी यह मानना था कि चुनाव का आयोजन करने वाले अधिकारियों को स्थानीय दबावों तथा राजनीतिक शक्तियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनका विचार था कि वास्तव में स्वतंत्र निर्वाचन कराने के लिए उन्हें मौजूदा सरकार के हाथों में या नियंत्रणाधीन नहीं होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने भी यह माना कि निर्वाचन कराने वाली संस्था को सत्तारूढ़ दल के प्रभुत्व से पूरी तरह सुरक्षित होना चाहिए और उसे केवल कार्यपालिका (केंद्र सरकार) द्वारा नियुक्त नहीं होना चाहिए। हालांकि, अधिनियम में ऐसे कई उपबंध निहित हैं जो भारत के निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को बाधित कर सकते हैं।
  • चयन समिति पर भारत सरकार का प्रभाव: संविधान का अनुच्छेद 324 यह उपबंधित करता है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए की जाएगी। उच्चतम न्यायालय द्वारा 2023 में यह ध्यान दिया गया कि संविधान सभा ने विधि द्वारा नियुक्त एक स्वायत्त निर्वाचन आयोग की अनुशंसा की थी, न कि कार्यपालिका द्वारा नियुक्त निर्वाचन आयोग की। उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार, एक चयन समिति, जो प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, और लोक सभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनी होगी, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में तब तक अपनी सिफारिशें देगी जब तक कि संसद द्वारा इस निमित्त कोई विधि नहीं बना ली जाती।
    हालांकि, इस चयन समिति के संबंध में अधिनियम उपबंध करता है कि इस समिति के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और सदस्यों के रूप में संघ के एक कैबिनेट मंत्री, और लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े एकल विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। यह उपबंध दर्शाता है कि इस समिति के अधिकांश सदस्य मौजूदा सरकार से संबंध रखते है, जो पुनः भारत के निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता में बाधा डालता है।
  • रिक्ति के बावजूद चयन समिति की सिफारिशों की विधिमान्यता: अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि चयन समिति की सिफारिशें विधिमान्य होंगी, भले ही इस समिति में कोई रिक्ति हो। समिति के तीन सदस्यों में से, केवल लोक सभा के नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त हो सकता है, और ऐसा लोक सभा के भंग/विघटित होने की स्थिति में होगा, जो केवल किसी आगामी आम चुनाव से पहले उत्पन्न होगी। अतः, उस समय, समिति केवल सत्तारूढ़ दल के सदस्यों से मिलकर बनेगी।
  • खोजबीन समिति के सुझावों की उपेक्षा: अधिनियम के अनुसार, चयन समिति के विचार हेतु खोजबीन समिति पांच व्यक्तियों के एक पैनल का सुझाव देगी, जो इस पैनल में सम्मिलित पांच व्यक्तियों से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति पर भी विचार कर सकेगी। इसके दो निहितार्थ हैं: (i) खोजबीन समिति की भूमिका कमजोर हो जाएगी, यद्यपि इस समिति का गठन विशेष रूप से सक्षम और योग्य उम्मीदवारों की खोज करने के किए किया जाना है; और (ii) खोजबीन समिति, जिसमें केवल लोक सेवक शामिल हैं, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के पदों के लिए उम्मीदवारों का फैसला अकेले नहीं करेगी।
  • अर्हता/पात्रता लोक सेवकों तक सीमित: अधिनियम नियत करता है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त केवल ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाएंगे जो भारत सरकार के सचिव के समतुल्य रैंक का पद धारण कर रहे हैं या धारण कर चुके हैं। इस प्रकार, अर्हता मानदंडों को लोक सेवकों के समतुल्य पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों तक सीमित करने से अधिक योग्य उम्मीदवार ऐसे पदों से वर्जित हो सकते हैं।
  • भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता से संबंधित अन्य मुद्दे: यद्यपि उच्चतम न्यायालय के साथ ही कई अन्य समितियों ने भी अपनी अनुशंसाएं दी हैं ताकि भारत के निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र बनाया जा सके, तथापि यह अधिनियम मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की पदच्युति की प्रक्रिया, और एक पृथक सचिवालय के माध्यम से निर्वाचन आयोग की प्रशासनिक स्वायत्तता जैसे मुद्दों को संबोधित नहीं करता।
  • समता का अभाव: अधिनियम के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों के पद समकक्ष हैं, जैसा कि निर्णय लेने संबंधी मामलों में दोनों को अपनी राय देने का समान अधिकार है और दोनों का वेतन भी समान है। तथापि, उनकी पदच्युति की प्रक्रिया में समता की कमी है क्योंकि अधिनियम पदच्युति के लिए अलग-अलग उपबंध प्रतिधारित करता है जैसा कि संविधान में निर्दिष्ट किया गया है। यह निष्पक्षता के संबंध में शंकाएं उत्पन्न करता है। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि निर्वाचन आयुक्तों की पदच्युति की प्रक्रिया को केवल किसी संविधान संशोधन के माध्यम से परिवर्तित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत के संविधान के अनुसार, भारत एक पंथनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। इस दशा में, लोकतंत्र केवल तभी सफल हो सकता है जब उसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाए जाएं। अतः, निर्वाचित लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन आयोग (यहां, भारत निर्वाचन आयोग) का होना अनिवार्य है। यदि यह अधिनियम न्यायसंगत रूप से इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करता है, तो यह भारत निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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