अप्रैल 2024 में इंडोनेशिया के उत्तरी सुलावेसी प्रांत में स्थित सबसे दक्षिणी स्तरित ज्वालामुखी (स्ट्रैटो-वोल्कैनो) माउंट रुआंग से ज्वालामुखी विस्फोटों या उद्गारों (ज्वालामुखी के मुख से भूपृष्ठ पर लावा, झांवा, धूल आदि का विस्फोट या शांत उत्सर्जन) की एक शृंखला देखी गई। इसी प्रकार से, मई 2024 में दक्षिण-पश्चिम आइसलैंड के सिलिंगारफेल (Sylingarfell) से उत्तर-पूर्व में रेक्जेनेस (Reykjanes) प्रायद्वीप में फग्रादाल्सफ्जाल (Fagradalsfjall) ज्वालामुखी पर एक नया फिशर इरपशन या विदर उद्गार (किसी दीर्घ दरार से उत्पन्न ज्वालामुखी उद्गार) आरंभ हुआ, जो दिसंबर 2023 के बाद से इस क्षेत्र में पांचवां उद्गार है।
ज्वालामुखी भू-पर्पटी (पवर्त) के शीर्ष पर एक संविदारण या छिद्र है, जिसके माध्यम से गर्म लावा, ज्वालामुखीय राख और गैसें निकलकर पृथ्वी की सतह पर आती हैं। ज्वालामुखी भूमि पर और समुद्र में हो सकते हैं। वे विवर्तनिक पट्टिकाओं (टेक्टोनिक प्लेट) से संबद्ध होते हैं जो अपसरण या अभिसरण कर रही होती हैं जिसके परिणामस्वरूप ज्वालामुखी उद्गार होता है। पृथ्वी की सतह के नीचे ऊष्मा के संचलन से प्रेरित, उद्गार सामान्यतया भू-पर्पटी के पास जलाशयों में गैस-समृद्ध मैग्मा संचय के साथ शुरू होते हैं। कभी-कभी, ज्वालामुखी उद्गारों से पहले भूमि में छोटे निकासों से भाप एवं गैस का उत्सर्जन होता है।
एक स्तरित ज्वालामुखी कठोर (hardened) लावा और टेफ्रा (ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकले चट्टाने के टुकड़े) की कई परतों से बना होता है। गुंबदी ज्वालामुखियों (शील्ड वोल्कैनो) की तुलना में इनकी विशेषता एक अतिप्रवण परिच्छेदिका है। स्तरित ज्वालामुखियों से निकलने वाला लावा, उच्च श्यानता (विस्कोसिटी) के कारण दूर जाने से पहले शीतल एवं कठोर होता है।
इंडोनेशिया के महत्वपूर्ण ज्वालामुखी पर्वतों में से एक माउंट रुआंग में दो सप्ताह में दूसरी बार विस्फोट हुआ। आसमान में दो किमी की दूरी तक इसकी राख फैल गई, जिसके कारण पास के हवाई अड्डे को बंद करना पड़ा। उत्तरी सुलावेसी प्रांत में 725 मीटर ऊंचा माउंट रुआंग इंडोनेशिया के 130 सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है। वर्ष 1808 (पहला उद्गार) के बाद से इस ज्वालामुखी में कम से कम 16 बार उद्गीर्ण हो चुका है।
इंडोनेशिया में ज्वालामुखी उद्गार
इंडोनेशिया, हिंद और प्रशांत महासागरों में दक्षिण पूर्व एशिया की मुख्य भूमि के तट से दूर स्थित एक देश है। यह भूमध्यरेखा के पार स्थित एक द्वीपसमूह (archipelago—10 सितंबर, 1982 के समुद्र विधि संबंधी संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के अनुच्छेद 46 के अनुसार ऐसे द्वीपों का समूह को समुद्री जल के हों और जो इस प्रकार एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हों कि उनको चारों ओर के समुद्री जल सहित एक भौगोलिक, आर्थिक अथवा राजनैतिक इकाई माना जा सकता है अथवा ऐतिहासिक दृष्टि से उसे एक इकाई माना जाता रहा है।) पर स्थित है और पृथ्वी की परिधि के आठवें हिस्से को घेरता है। देश में कई द्वीप हैं जो सुमात्रा, जावा, बोर्नियो, सेलेब्स, बाली, मोलुकास और न्यू गिनी के ग्रेटर सुंडा द्वीपों में समूहीकृत हैं। इंडोनेशिया के प्रमुख द्वीपों की विशेषता सघन वनाच्छादित ज्वालामुखीय पर्वत हैं।
इंडोनेशिया ‘‘रिंग ऑफ फायर’’ (ज्वालामुखी पर्वतमाला) , जो अमेरिका के पश्चिमी तटों से जापान और दक्षिण पूर्व एशिया तक विस्तृत भ्रंश-रेखाओं की एक शृंखला है, पर स्थित होने के कारण ज्वालामुखी उद्गारों और भूकंपों के प्रति अति संवेदनशील है।
प्रशांत महासागर के किनारे स्थित रिंग ऑफ फायर, जिसे सर्कम-पैसिफिक बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है, सक्रिय ज्वालामुखियों और बारंबार आने वाले भूकंपों के लिए जाना जाता है। इसकी लंबाई लगभग 40,000 किमी है। इस पर्वतमाला से कई विवर्तनिक पट्टिकाओं, जिनमें प्रशांत, जुआन डे फूका, कोकोस, इंडियन-ऑस्ट्रेलियन, नाजका, उत्तरी अमेरिकी और फिलिपीनी पट्टिकाएं शामिल हैं, की सीमाएं मिलती हैं। पृथ्वी के 450 से अधिक ज्वालामुखी (कुल ज्वालामुखियों का 75 प्रतिशत) रिंग ऑफ फायर के किनारे स्थित हैं। पृथ्वी के 90 प्रतिशत भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं, जिनमें ग्रह पर सबसे प्रचंड और आकस्मिक भूकंपीय घटनाएं शामिल हैं।
रिंग ऑफ फायर पर उद्गार क्यों
रिंग ऑफ फायर के ज्वालामुखियों और भूकंपों की बहुलता इस क्षेत्र में विवर्तनिक पट्टिकाओं के संचलन के कारण है। इस भू-भाग में अंतःग्रसन क्षेत्र हैं जहां पट्टिकाओं की अतिव्याप्ति होती है, जिसमें नीचे की पट्टिका ऊपर की पट्टिका द्वारा अंतःग्रसित हो जाती है। शैल अंतःग्रसन के कारण ये पट्टिकाएं पिघल जाती हैं तथा मैग्मा में परिवर्तित हो जाती हैं, जिससे भूपृष्ठ की निकटता के कारण ज्वालामुखी गतिविधि के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं। एक उल्लेखनीय अपवाद प्रशांत और उत्तरी अमेरिकी पट्टिकाओं के बीच की सीमा है जहां ये पट्टिकाएं अंतःग्रसन के बजाय बाएं या दाएं (रूपांतर भ्रंश या सीमा) संचलन करती हैं। पट्टिकाओं के बाईं या दाईं ओर संचलन करने से भू-पर्पटी में दबाव के संचयन और दबाव के निर्मुक्त होने के कारण बड़ी संख्या में भूकंप आते हैं।
मई 2024 में, इंडोनेशियाई प्राधिकारियों ने हलमाहेरा के सुदूर द्वीप पर स्थित माउंट इबू पर भी ज्वालामुखी उद्गार की सूचना दी, जिससे एक धूसर राख का बादल बन गया और आस-पास के गांव खाली करवाए गए। इसने आसमान में 2.5 मील की राख निर्मुक्त की और इसके कारण विवर (क्रेटर) के चारों ओर बैंगनी तड़ित आकस्मिक प्रवाह (फ्लैश) हुआ।
आइसलैंड में ज्वालामुखी उद्गार मई 2024 में हुआ था, जो दिसंबर 2023 के बाद से पांचवां उद्गार था। यहां, औसतन प्रति पांच वर्ष में उद्गार होता है। हालांकि, 2021 से इसकी आवृत्ति लगभग प्रति वर्ष हो गई है। राजधानी रेक्जाविक (Reykjavik) से लगभग 35 किमी दूर स्थित फग्रादाल्सफ्जाल के नाम से ज्ञात इस क्षेत्र का निर्माण रेक्जानेस प्रायद्वीप में आई एक भूकंपों की शृंखला के बाद हुआ। कई महीनों की अवधि में हुए तीन उद्गार दक्षिण-पश्चिमी प्रायद्वीप, जो लगभग आठ शताब्दियों से निष्क्रिय अवस्था में है, पर एक नए भूवैज्ञानिक युग की शुरुआत का संकेत देते हैं।
आइसलैंड में ज्वालामुखी उद्गार
आइसलैंड एक द्वीप राष्ट्र है जो उत्तरी अटलांटिक महासागर में उत्तरी अमेरिका और यूरोप के बीच गतिक उपरि सीमा पर स्थित है। हिमनद की बर्फ और शीतित लावा देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग दसवें हिस्से का आवरण करता है। आइसलैंड अपेक्षाकृत एक नवोदित भूवैज्ञानिक देश है जहां लगभग 200 भिन्न प्रकार के ज्वालामुखी हैं। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 1500 ई. से अब तक पृथ्वी के कुल लावा प्रवाह का लगभग एक-तिहाई हिस्सा आइसलैंड के ज्वालामुखियों से निकला है।
आइसलैंड में उद्गार क्यों
आइसलैंड उत्तरी अटलांटिक महासागर में मध्य-अटलांटिक कटक (रिज) पर स्थित है, जहां यूरेशीय और उत्तरी अमेरिकी पट्टिकाओं के संचलन होता है। चूंकि ये पट्टिकाएं प्रति वर्ष कुछ सेंटीमीटर दूर हो रही हैं और भू-पर्पटी को विभाजित और तोड़ती हैं, इसलिए ज्वालामुखी रिफ्ट (अनुपाट) क्षेत्र बनते हैं जहां पिघली हुई चट्टान या मैग्मा सतह पर आता है और कभी-कभी लावा या राख के रूप में विस्फोट होता है। इसके अलावा, यह एक उष्ण क्षेत्र (या अतिक्षेत्र अर्थात हॉटस्पॉट—पृथ्वी के भीतर उष्ण क्षेत्र जहां मैग्मा गर्म होता है और जैसे-जैसे मैग्मा गर्म होता है, इसकी सघनता कम होती जाती है, जिससे इसका उत्थापन ऊपर की ओर होता है) पर स्थित है। इससे क्षेत्र में ज्वालामुखी गतिविधि में वृद्धि होती है।
ज्वालामुखी उद्गारों का प्रभाव
साधारणतया, ज्वालामुखी उद्गारों से ज्वालामुखीय राख, गैसें, लाहार (पंक प्रवाह), भूस्खलन, लावा, प्रवाह और ज्वलखंडाश्मी प्रवाह (पाइरोक्लास्टिक फ्लो—ठोस लावा के टुकड़ों, ज्वालामुखीय राख और गर्म गैसों का सघन व तेज गति से बहने वाला प्रवाह) जैसे कई जोखिम उत्पन्न होते हैं। लावा स्वास्थ्य के लिए संकट है, और जीवन एवं संपत्ति के लिए जोखिम उत्पन्न करता है जैसा कि पिघली हुई चट्टानें घरों, खेतों और नजदीकी क्षेत्रों में फैल सकता है और अकसर आबादी के विस्थापन का कारण बनता है। सल्फर युक्त और अन्य ज्वालामुखी गैसें, जैसे स्मॉग (धूमकुहा) एवं वॉग (वोल्कैनिक फॉग—ज्वालामुखी उत्सर्जन से होने वाला वायु प्रदूषण) भी स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं जैसे कि आंखों में जलन, सिरदर्द और गले में खराश।
ज्वालामुखी उद्गारों के परिणामस्वरूप भूस्खलन और मडस्लाइड (एक पहाड़ या पर्वत से बड़ी मात्रा में पंक [Mud] का खिसकना, जो आमतौर पर क्षति या विनाश कारण बनता है।) भी होता है, जो खतरनाक हैं। तथापि, उद्गारों से मृदा का उपजाऊ होना, हाइड्रोथर्मल (उष्णजलीय—तप्त जल [या भाप] से समृद्ध प्रसर्गों [emanations] तथा परिणामी प्रकर्मों एवं उत्पादों से संबंधित) ऊर्जा, और कीमती खनिज जैसे कई पर्यावरणीय और पर्यटन संबंधी लाभ भी मिलते हैं।
ज्वालामुखी उद्गार से संबंधित शब्द
टेफ्रा ज्वालामुखीय चट्टान के टुकड़े होते हैं जिनका व्यास 2 मिलीमीटर से कम और 1 मीटर से अधिक तक होता है जो विस्फोटक उद्गार के दौरान हवा में उछलते हैं।
ऐश फॉल (भस्म पात) टेफ्रा का एक महीन घटक है जो उद्गार के दौरान व्यापक क्षेत्रों में फैल जाता है। भस्म के कण कठोर, घर्षणकारी और हल्के संक्षारक हो सकते हैं। तुरंत गिरी हुई भस्म में एक अम्लीय आलेप हो सकता है जो आंखों एवं फेफड़ों में जलन पैदा कर सकता है, तथा स्थानीय जल आपूर्ति को प्रदूषित और वनस्पति को नुकसान पहुंचा सकती है।
लाहर (पंक या मलबे का प्रवाह) एक इंडोनेशियाई शब्द है जिसका अर्थ है ज्वालामुखी की ढलानों से बहता हुआ ज्वालामुखीय मलबा और गर्म या शीतल जल का मिश्रण, जो प्रायः नदी घाटी में प्रवेश कर जाता है। लाहर आकार और गति में भिन्न होते हैं, तथा कुछ मीटर चौड़े और कई सेंटीमीटर गहरे या फिर सैकड़ों मीटर चौड़े (व्यास में 10 मीटर तक) और दसियों मीटर गहरे हो सकते हैं।
लावा प्रवाह पिघली हुई चट्टानों की धाराएं हैं जो किसी उद्गीर्ण द्वार (वेंट) से बहता या रिसता है। तरल बेसाल्ट (सूक्ष्म कणों वाला क्षारीय आग्नेय शैल जो तरल रूप में होता है) प्रवाह दसियों किलोमीटर तक फैल सकता है और मृदु ढलानों पर 1 किमी प्रति घंटे और खड़ी ढलानों पर 10 किमी प्रति घंटे तक की गति से प्रवाहित होता है।
ज्वालामुखी से निकलने वाली ज्वालामुखी गैसों में भाप, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड और हाइड्रोजन फ्लोराइड शामिल हैं।
ज्वलखंडाश्मि प्रवाह और महोर्मि गर्म, शुष्क चट्टान के टुकड़ों एवं गैसों का उच्च घनत्व वाला मिश्रण हैं जो उच्च गति से वेंट से दूर चले जाते हैं। इसमें स्थूल टुकड़ों की एक बेसल परत जो सतह के साथ संचलन करती है और एक अधिक उत्प्लावी ऊपरी परत होती है। यह प्रवाह 1 मीटर से कम से लेकर 200 मीटर से अधिक तक की परतों को संचित कर सकती है।
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