17 दिसंबर, 2024 को लोक सभा में केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 प्रस्तुत किया गया। यह विधेयक लोक सभा तथा सभी राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित कराने हेतु निर्वाचन आयोग को अधिकार प्रदान करने का प्रस्ताव करता है। पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने इसकी सिफारिश की थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य चुनावों को समन्वित करना तथा चुनावी व्यवधानों की आवृत्ति को कम करना है। यह विधेयक चुनाव की क्रमिक तिथियों तथा एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव करता है। इसके अतिरिक्त, यह विधेयक अधिक प्रभावी निर्वाचन प्रबंधन की आवश्यकता को रेखांकित करता है तथा अविश्वास प्रस्तावों या त्रिशंकु विधान सभाओं की स्थिति से निपटने की एक विशिष्ट प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। 19 दिसंबर, 2024 को इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया, ताकि विधिक और संवैधानिक विशेषज्ञों से परामर्श तथा संशोधन विधेयक की समीक्षा की प्रक्रिया एवं कार्यविधियों को निर्धारित किया जा सके।
संघ राज्यक्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024
संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक के अतिरिक्त, संघ राज्यक्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक भी 17 दिसंबर, 2024 को प्रस्तुत किया गया। यह विधेयक संघ राज्यक्षेत्रों को समकालिक (एक साथ) चुनाव के ढांचे के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव करता है। यह संघ राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1963; दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम 1991; तथा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
इस विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संघ राज्यक्षेत्रों की विधान सभाओं के चुनाव लोक सभा चुनावों के साथ एक ही समय पर कराए जाएं, ताकि देशभर में एक साथ चुनाव कराने के सरकार के व्यापक लक्ष्य के साथ तालमेल स्थापित किया जा सके।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में एक साथ चुनाव कोई नई अवधारणा नहीं है। संविधान को अपनाने के बाद, 1951 से 1967 तक लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे। पहले चार चुनाव—1951-52, 1957, 1962 और 1967—इसी व्यवस्था के तहत कराए गए थे। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं तथा 1970 में चौथी लोक सभा के समय से पूर्व भंग (विघटन) होने के कारण एक साथ चुनाव कराने का चक्र बाधित हो गया।
आपातकाल की घोषणा के बाद अनुच्छेद 352 के तहत पांचवीं लोक सभा का कार्यकाल 1977 तक बढ़ा दिया गया। तब से, अधिकांश लोक सभाओं का कार्यकाल समय से पहले ही समाप्त होता रहा, और केवल कुछ ही लोक सभाओं ने अपना पंचवर्षीय कार्यकाल पूरा किया। इसी प्रकार, राज्य विधान सभाओं में भी बार-बार समय से पहले विघटन देखा गया, जिसके कारण देशभर में एक साथ चुनाव कराए जाने की योजना भंग हो गई।
उद्देश्यों और कारणों का विवरण
भारत के विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट ‘निर्वाचन विधियों में सुधार’ में सिफारिश की थी कि राज्य विधान सभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव कराना अपवाद होना चाहिए, जबकि सामान्य नियम यह होना चाहिए कि लोक सभा तथा सभी राज्य विधान सभाओं के चुनाव प्रत्येक पांच वर्ष में एक साथ कराए जाएं। इसके अतिरिक्त, कार्मिक, लोक शिकायत तथा विधि एवं न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता की जांच की तथा सुझाव दिया कि इन चुनावों के संचालन हेतु व्यावहारिक तरीके विकसित किए जाएं। साथ ही, समिति ने विश्वास व्यक्त किया कि चुनावी प्रक्रियाओं की आवृत्ति को कम करने का समाधान ढूंढ लिया जाएगा।
वर्तमान समय में अनेक कारणों से, विशेष रूप से चुनावों की बढ़ती लागत और समय की मांग को देखते हुए, एक साथ चुनाव कराए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है। चुनाव प्रभावित क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता के लागू होने से विकास कार्यक्रमों पर रोक लग जाती है, सामान्य जनजीवन बाधित होता है, सेवाओं का संचालन प्रभावित होता है, और चुनावी कार्यों के प्रबंधन हेतु दीर्घ अवधि तक बड़ी संख्या में मानव बल को उनकी मूल गतिविधियों से हटाकर चुनावी क्षेत्रों में तैनात करना पड़ता है।
उच्चस्तरीय समिति के निष्कर्ष
भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में, 2 सितंबर, 2023 को एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य एक साथ चुनावों के मुद्दे की समीक्षा करना तथा देश में उसके कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करना था। गहन विचार-विमर्श, उपलब्ध सामग्री की समीक्षा तथा इस संबंध में किए गए परामर्शों के उपरांत, समिति ने 14 मार्च, 2024 को अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को प्रस्तुत कीं। सरकार ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।
समिति को देशभर से 21,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 80 प्रतिशत ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। जिन 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार साझा किए, उनमें से 32 ने संसाधन के बेहतर उपयोग और सामाजिक सद्भाव का हवाला देते हुए इस विचार का समर्थन किया, जबकि 15 ने लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर चिंताएं व्यक्त कीं।
समिति ने चरणबद्ध क्रियान्वयन की सिफारिश की—पहले चरण में लोक सभा और राज्य विधान सभा चुनावों को एक साथ कराया जाए, उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएं। समिति ने मतदाता अधिकारों की रक्षा और प्रशासनिक त्रुटियों को कम करने के लिए शासन के सभी तीन स्तरों के लिए एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) की भी वकालत की।
संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 में प्रस्तावित संशोधन
यह विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद 82क को अंतःस्थापित करने का प्रस्ताव करता है, जो लोक सभा और सभी विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने पर केंद्रित होगा। इसमें अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्य विधान-मंडलों की अवधि) और अनुच्छेद 327 (विधान-मंडलों के चुनावों से संबंधित उपबंध करने की संसद की शक्ति) में संशोधन शामिल हैं।
संविधान में अनुच्छेद 82 के बाद, एक नया अनुच्छेद 82क अतःस्थापित किया जाएगा, जिसके अनुसार, अधिनियमन के बाद भारत के राष्ट्रपति साधारण निर्वाचन के पश्चात लोक सभा की पहली बैठक की तारीख को एक अधिसूचना जारी करके इस अनुच्छेद के उपबंध को प्रवृत्त कर सकेंगे, और अधिसूचना की उस तिथि को नियत तिथि (appointed date) कहा जाएगा।
नियत तिथि के पश्चात और लोक सभा की पूर्ण अवधि की समाप्ति के पूर्व होने वाले किसी भी साधारण निर्वाचन में गठित सभी विधान सभाएं लोक सभा की पूर्ण अवधि के साथ समाप्त हो जाएंगी। निर्वाचन आयोग को यह अधिकार दिया गया है कि वह आवश्यक संशोधनों के साथ अनिवार्य प्रावधानों को लागू करते हुए इन चुनावों को एक साथ आयोजित करे। यदि निर्वाचन आयोग की राय में किसी विधान सभा के निर्वाचन, लोक सभा के साधारण निर्वाचन के साथ नहीं कराए जा सकते हैं, तो वह राष्ट्रपति को यह सिफारिश कर सकेगा कि वे आदेश द्वारा यह घोषणा करें कि उस विधान सभा का निर्वाचन किसी पश्चातवर्ती तिथि पर कराया जा सकेगा। ऐसे मामलों में जहां चुनाव स्थगित किए जाते हैं, वहां संबंधित राज्य विधान सभा का कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा। निर्वाचन आयोग चुनावों की अधिसूचना जारी करते समय संबंधित विधान सभा के कार्यकाल की समाप्ति की तिथि भी घोषित करेगा।
लोक सभा के कार्यकाल से संबंधित शर्तों को परिभाषित करने के उद्देश्य से संविधान के अनुच्छेद 83 में संशोधन किया गया है। इसमें कहा गया है कि लोक सभा की पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष की अवधि को लोक सभा की पूर्ण अवधि के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा। यदि लोक सभा अपनी पूर्ण अवधि की समाप्ति से पहले ही विघटित हो जाती है, तो उसके विघटन की तिथि और उसकी पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष के बीच की अवधि को उसकी ‘समाप्त नहीं हुई’ शेष अवधि के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा। जहां लोक सभा को उसकी पूर्ण अवधि की समाप्ति के पहले ही विघटित कर दिया जाता है, वहां ऐसे विघटन के कारण के कारण होने वाले निर्वाचनों के अनुसरण में गठित नई लोक सभा, जब तक कि पहले ही विघटित न हो जाए, ऐसी अवधि के लिए जारी रहेगी, जो ठीक पूर्ववर्ती लोक सभा के पहले की समाप्त नहीं हुई शेष अवधि के बराबर हो और इस अवधि की समाप्ति सदन के विघटन के रूप में प्रवर्तित होगी। गठित लोक सभा पूर्ववर्ती लोक सभा की निरंतरता में नहीं होगी तथा विघटन के सभी परिणाम निर्दिष्ट लोक सभा को लागू होंगे। लोक सभा की समाप्त नहीं हुई शेष अवधि के लिए इसके गठन हेतु निर्वाचन, मध्यावधि निर्वाचन के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा और पूर्ण अवधि की समाप्ति के पश्चात होने वाले निर्वाचन को साधारण निर्वाचन के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 172 में संशोधन कर राज्य विधान सभा के कार्यकाल से संबंधित प्रावधान किया गया है। इसमें यह अवधारणा प्रस्तुत की गई है कि राज्य विधान सभा की ‘पूर्ण कार्यकाल’ उसकी पहली बैठक की तिथि से प्रारंभ होने वाली पांच वर्ष की अवधि होगी। जहां राज्य विधान सभा अपनी पूर्ण अवधि की समाप्ति से पहले ही विघटित हो जाती है, तो उसके विघटन की तिथि और उसकी पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष के बीच की अवधि को उसकी समाप्त नहीं हुई शेष अवधि के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा। जहां राज्य विधान सभा को उसकी पूर्ण अवधि की समाप्ति के पहले ही विघटित कर दिया जाता है और ऐसे विघटन के कारण होने वाले निर्वाचनों के अनुसरण में नई राज्य विधान सभा का गठन किया जाता है, तो ऐसी नई राज्य विधान सभा, जब तक कि पहले ही विघटित न हो जाए, ऐसी अवधि के लिए जारी रहेगी जो ठीक पूर्ववर्ती राज्य विधान सभा की पहले की समाप्त नहीं हुई शेष अवधि के बराबर हो और इस अवधि की समाप्ति विधान सभा के विघटन के रूप में प्रवर्तित होगी। राज्य विधान सभा पूर्ववर्ती राज्य विधान सभा की निरंतरता में नहीं होगी तथा विघटन के सभी परिणाम निर्दिष्ट राज्य विधान सभा को लागू होंगे।
संविधान के अनुच्छेद 327 में, ‘निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन’, शब्दों के पश्चात्, ‘एक साथ निर्वाचन कराना’, शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे।
प्रस्तावित विधेयक में यह रेखांकित किया गया है कि इसके अधिनियमित हो जाने पर, राष्ट्रपति साधारण चुनाव के पश्चात लोक सभा की पहली बैठक की तिथि पर अधिसूचना जारी करेंगे, जिसे “नियत तिथि” कहा जाएगा। लोक सभा का कार्यकाल इस नियत तिथि से पांच वर्ष का होगा। नियत तिथि के पश्चात किंतु लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व गठित की गई सभी विधान सभाओं का कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो जाएगा, और सभी विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। यदि लोक सभा या विधान सभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व ही भंग हो जाती है, तो गठित की जाने वाली नई लोक सभा या विधान सभा शेष अवधि के लिए कार्य करेगी।
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