बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 20 सितंबर, 2024 को सोशल मीडिया पर सरकार के विरुद्ध ‘फर्जी एवं मिथ्या’ सामग्री (content) की पहचान करने के उद्देश्य से संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को असंवैधानिक करार दिया। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने इंटरनेट पर फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के प्रावधानों के संशोधन के एक भाग के रूप में एक फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) की स्थापना करने का प्रयास किया था। न्यायालय ने इन नियमों को नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन माना, और ऑनलाइन सामग्री की निगरानी के लिए एफसीयू के गठन को प्रभावी रूप से अमान्य घोषित कर दिया। न्यायालय ने उल्लेख किया कि संशोधित आईटी नियम समानता और वाक् स्वातंत्र्य के अधिकार का उल्लंघन करेंगे, जिससे उनकी अस्पष्टता और व्यापकता के कारण संभावित रूप से व्यक्तियों और सोशल मीडिया मध्यवर्तियों पर उनका भयावह प्रभाव पड़ेगा।
पृष्ठभूमि
भारत सरकार (कार्य-आबंटन) नियम, 1961 के तहत, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) सरकारी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए उत्तरदायी है। प्रभावी ढंग से इन कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए एमआईबी को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) सहित कई संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। भारत सरकार के बारे में सार्वजनिक सूचनाओं का प्रचार करने में मंत्रालय के कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा फर्जी, मिथ्या और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को संबोधित करना और उससे निपटना है।
पीआईबी भारत सरकार के संबंध में फर्जी खबरों से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठाता रहा है। नवंबर 2019 में, इसने एक फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना की जिसका विशेष उद्देश्य सरकारी नीतियों, मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और केंद्र सरकार की अन्य संस्थाओं से संबंधित भ्रामक सूचनाओं को संबोधित करना है। एफसीयू एक कठोर तथ्य-जांच प्रक्रिया के माध्यम से सरकारी घोषणाओं और विनियमों के बारे में दावों को सत्यापित करता है, जिससे मिथकों और फर्जी दावों को दूर करते हुए जनता को सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने में मदद मिलती है। पीआईबी के एफसीयू का नेतृत्व भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) के महानिदेशक (डीजी) या अपर महानिदेशक (एडीजी) स्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किया जाता है।
अप्रैल 2022 में, MeitY ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (2023 नियम) प्रख्यापित किए, जिसने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन किया।
इस संशोधन ने केंद्र सरकार को एक तथ्य-जांच निकाय बनाने का अधिकार दिया, जो केंद्र सरकार के कारबार से संबंधित किसी भी सूचना को “फर्जी, मिथ्या या भ्रामक” के रूप में वर्गीकृत कर सकता है।
संशोधित नियम 3(1)(ख)(v) में यह अनिवार्य किया गया है कि सोशल मीडिया के मध्यवर्ती उपयोगकर्ताओं को ऐसी सामग्री अपलोड करने से रोकने के लिए “यथोचित प्रयास” करेंगे, जिसे केंद्र के एफसीयू द्वारा भ्रामक सूचना के रूप में चिह्नित किया गया है। यदि ऐसी सामग्री को चिह्नित किया जाता है, तो मध्यवर्तियों को अपने “सुरक्षित आश्रय” को सुरक्षित रखने के लिए इसे 36 घंटों के भीतर हटाना होगा, जो उनके प्लेटफॉर्म पर प्रस्तुत तृतीय-पक्ष सामग्री के लिए विधिक उन्मुक्ति प्रदान करता है।
केंद्र ने पीआईबी के अधीन एफसीयू को केंद्र सरकार की अधिकृत इकाई के रूप में अधिसूचित किया है। केंद्र ने कहा कि एफसीयू केंद्र सरकार से संबंधित ऑनलाइन सूचनाओं की सटीकता का निर्धारण करेगा, यदि आवश्यक हो तो फेसबुक एवं ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री को ‘फर्जी’ या ‘भ्रामक’ के रूप में चिह्नित करेगा। इसके बाद सोशल मीडिया वेबसाइट्स और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को विधिक उन्मुक्ति को कायम रखने के लिए सूचित (फ्लैग) सामग्री को हटाना या उस तक पहुंच को ब्लॉक अर्थात बाधित करना होगा।
हालांकि, इस कदम का स्टैंड-अप कॉमेडियन (सामान्यतया किसी कलाकार द्वारा सीधे दर्शकों के समक्ष हास्य-व्यंग्य की प्रस्तुति) कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल असोसिएशन और असोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने विरोध किया, जिन्होंने दावा किया कि ये नियम स्वेच्छाचारी, असंवैधानिक और मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार को फर्जी खबरों को निर्धारित करने का एकमात्र अधिकार देने से खबरों तथा सूचनाओं पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण हो जाएगा और मीडिया पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, इन सभी ने एफसीयू के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि इन नए नियमों के कारण उनकी सामग्री को ब्लॉक किया जा सकता है या अकाउंट को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है और इससे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
अभियोग एवं वस्तुस्थिति
इस मामले को न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ के पास भेजा गया था। 31 जनवरी, 2024 को उन्होंने मामले में खंडित निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल संशोधित नियमों के पक्ष में नहीं थे, जबकि न्यायमूर्ति नीला गोखले ने नियमों को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल ने अपने फैसले में कहा कि सरकार भाषण को बलात सत्य या मिथ्या के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकती और किसी ऐसी जानकारी को नहीं दबा सकती जिसे वह मिथ्या मानती है, जैसा कि यह सेंसरशिप है। उन्होंने यह कहते हुए एफसीयू की आलोचना की कि उसके पास सत्य के बारे में अपने एकतरफा दृष्टिकोण को लागू करने की शक्ति है। उन्होंने इस प्राधिकरण को ‘आक्रामक और निष्ठुर’ बताया।
न्यायमूर्ति गोखले ने इसका विपरीत मत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने केवल सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने के कारण एफसीयू के सदस्यों द्वारा पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाए जाने को अनुचित माना। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पक्षपात के मामलों में विधिक उपाय उपलब्ध हैं। उन्होंने तर्क दिया कि नियम प्रत्यक्षतः मध्यवर्तियों या उपयोगकर्ताओं को दंडित नहीं करते और न ही उनके अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं। न्यायमूर्ति गोखले ने एफसीयू के अधिकार को चुनौती देने को समय से पहले का कदम माना, चूंकि इसका स्वरूप अस्पष्ट बना हुआ है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी प्रामाणिक सूचनाओं तक पहुंच पर निर्भर करती है, जिसे भ्रामक सूचनाओं से अप्रभावित होना चाहिए, अन्यथा उनके अधिकार निरर्थक हो जाते हैं। न्यायमूर्ति नीला गोखले ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी तभी सार्थक है जब उनके पास वास्तविक सूचना तक पहुंच हो, जो भ्रामक सूचना, असत्यता या जान-बूझकर किए गए धोखे से अछूती हो, ताकि वे सूचित निर्णय ले सकें।
इस खंडित निर्णय के कारण, बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने मामले की पुनः सुनवाई करने और गतिरोध का समाधान करने हेतु 7 फरवरी, 2024 को तीसरे न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर को नियुक्त किया।
केंद्र सरकार द्वारा यह खुलासा किए जाने के बाद कि नियमों को औपचारिक रूप से आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया गया है, न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर ने संशोधित नियमों पर अस्थायी रोक लगाने से इनकार कर दिया। 11 मार्च को न्यायमूर्ति चंदुरकर ने याचिकाओं की योग्यताओं पर अपना अंतिम मत देने तक एफसीयू के गठन की अधिसूचना पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका निर्णय अंतरिम आवेदनों से संबंधित मुद्दे पर किए गए प्रारंभिक विचार-विमर्श पर आधारित था। न्यायमूर्ति चंदुरकर के मत के बाद, उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक के आवेदनों को खारिज कर दिया।
अंतरिम रोक खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय में एक अपील दायर की गई। हालांकि, केंद्र ने 20 मार्च, 2024 को 2023 के नियमों को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर दिया, जो कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील पर की गई सुनवाई से ठीक एक दिन पहले था। लोक सभा चुनाव निकट होने के कारण, सरकार के लिए ‘सरकारी कारबार’ से संबंधित समाचारों को प्रबंधित करने के लिए ये नियम महत्वपूर्ण थे।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 21 मार्च, 2024 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय पर पहुंचने तक संशोधित नियमों पर रोक लगा दी।
न्यायालय ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून संवैधानिक माने जाते हैं, किंतु फिर भी उन्हें न्यायिक पुनर्विलोकन का सामना करना पड़ सकता है। किसी कानून की असंवैधानिकता सिद्ध करने का भार याचिकाकर्ताओं पर पड़ता है। न्यायालय सामान्यतया, संवैधानिकता पर निर्णय सुनाने से पहले कानूनों पर रोक लगाने से बचते हैं, तथा न्यायिक पुनर्विलोकन एवं संसद की विधायी शक्तियों के बीच संतुलन बनाते हैं।
सर्वप्रथम, नियम विधान के कार्य नहीं हैं, बल्कि संसद द्वारा प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग कर मंत्रालय द्वारा जारी किए गए निदेश हैं। इससे संवैधानिकता की पूर्वधारणा की प्रभावसीमा बदल जाती है। इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय ने पूर्व में उल्लेख किया था कि अंतरिम रोक लगाने के लिए असंवैधानिकता की स्पष्ट व्याख्या करना आवश्यक है जिसका अनुमान, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के प्रेक्षण के अनुसार, न्यायमूर्ति पटेल के 148 पृष्ठ के विस्तृत निर्णय से लगाया जा सकता है, भले ही यह एक खंडित निर्णय का हिस्सा हो।
उच्चतम न्यायालय द्वारा संशोधित नियमों पर रोक लगाने के बाद, बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति चंदुरकर द्वारा 8 अगस्त, 2024 तक सुनवाई की गई। याचिकाकर्ताओं का प्रतिवाद करते हुए, केंद्र ने स्पष्ट किया कि नियम केवल सोशल मीडिया पर सरकारी कारबार से संबंधित झूठे, भ्रामक या फर्जी तथ्यों के प्रसार को लक्षित करते हैं, न कि सरकार पर निर्देशित मत, आलोचना, व्यंग्य या हास्य को।
निर्णायक निर्णय
सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति चंदुरकर ने खंडित निर्णय पर अपने 99 पृष्ठ के फैसले में न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल से सहमति जताते हुए कहा कि संशोधित नियम 3(1)(ख)(v) संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), 19(1)(क) (वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य) और 19(1)(छ) (वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का अधिकार) का उल्लंघन है।
विवादित नियम नागरिकों के मूल अधिकारों को अनुच्छेद 19(2) में उल्लिखित समुचित सीमाओं से भी अत्यधिक सीमित करता है, जो इसे प्रत्यायोजित विधान के माध्यम से अस्वीकार्य बनाता है।
न्यायाधीश ने नियम में फर्जी, मिथ्या या भ्रामक पदों को ‘अस्पष्ट और अतिव्यापक’ माना। इसके अतिरिक्त, न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति पटेल के इस मत का समर्थन किया कि वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार में स्वाभाविक रूप से ‘सत्य जानने का अधिकार’ शामिल नहीं है।
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि नागरिकों को केवल वही जानकारी मिले जो एफसीयू द्वारा सत्य मानी जाती है, विशेष रूप से वह जानकारी जो फर्जी, मिथ्या या भ्रामक नहीं है। उन्होंने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि एफसीयू के निर्णयों को संवैधानिक न्यायालय में चुनौती देने की अनुमति देना पर्याप्त रक्षोपाय प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि केवल यही प्रावधान नियम को वैध नहीं ठहरा सकता या इसके दायरे को सीमित करने का औचित्य नहीं हो सकता है।
उन्होंने न्यायमूर्ति पटेल से सहमति जताते हुए कहा कि विवादित नियम से सुरक्षित आश्रय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खोने का जोखिम है, जिसका दोनों मध्यर्तियों पर भयावह प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इसे रद्द किया जा सकता है।
आगे की राह
न्यायमूर्ति चंदुरकर की राय ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में 2:1 से मामले का फैसला दिया। उनकी राय दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसने 26 सितंबर, 2024 को विवादित नियम के विरुद्ध 2:1 से बहुमत के फैसले की औपचारिक घोषणा की, जिससे प्रक्रियात्मक प्रक्रिया पूरी हो गई।
यद्यपि केंद्र द्वारा 24 दिसंबर, 2024 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस निर्णय को एक विशेष अनुमति याचिका (special leave petition) के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में यह तर्क देते हुए चुनौती दी गई कि 2021 के नियमों में किया गया संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि यह केवल ‘उद्देश्यपूर्ण तरीके से गलत सूचनाओं’ के प्रसार पर लागू होता है। यद्यपि उच्चतम न्यायालय द्वारा अब तक केंद्र की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार नहीं किया गया है।
2021 के दिशानिर्देशों के अन्य पहलू अभी भी विभिन्न उच्च न्यायालयों जैसे, दिल्ली और मद्रास उच्च न्यायालय, के समक्ष लंबित हैं, जिनमें वे प्रमुख प्रावधान भी शामिल हैं जिनके तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए शिकायत निवारण और अनुपालन तंत्र स्थापित करना आवश्यक है, जिसमें एक स्थानीय शिकायत अधिकारी, मुख्य अनुपालन अधिकारी और केंद्रीय संपर्क अधिकारी की नियुक्ति करना शामिल है।
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