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राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन

जनवरी 2023 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) को स्वीकृति की गई। इससे पहले 15 अगस्त, 2021 को भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की गई थी। इसके पश्चात फरवरी 2022 में सरकार द्वारा हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया नीति को अधिसूचित किया गया।

इस मिशन के लिए सरकार ने आरंभिक रूप से कुल 19,744 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जिसके अंतर्गत हरित हाइड्रोजन संक्रमण (साइट) कार्यक्रम के लिए 17,490 करोड़ रुपये, प्रायोगिक तथा अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं पर क्रमशः 1,466 करोड़ रुपये तथा 400 करोड़ रुपये और अन्य घटकों के लिए 388 करोड़ रुपये की लागत वहन निर्दिष्ट की गई है। मिशन के घटकों के कार्यान्वयन तथा योजना के दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय उत्तरदायी होगा।

इस मिशन से भारत के ऊर्जा परिदृश्य में बदलाव आना अपेक्षित है।


हाइड्रोजन, रासायनिक आवर्त सारणी का प्रथम एवं सबसे हल्का तत्व है। हाइड्रोजन का भार हवा से भी कम होता है। यह मानक तापमान एवं दबाव पर एक गैर-विषाक्त, अधातु, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन तथा अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है।

विभिन्न स्रोतों एवं निष्कर्षण की पद्धतियों के आधार पर हाइड्रोजन को कलर टैब (रंगों के निशान)—ग्रे, ब्लू, और ग्रीन की तीन प्रकार के हाइड्रोजन में वर्गीकृत किया जा सकता है।

अधिकांश हाइड्रोजन का उत्पादन उद्योगों में प्राकृतिक गैस से होता है, जिससे वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है। इस श्रेणी के हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन कहा जाता है; भारत में सबसे अधिक इसी श्रेणी के हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है।

ब्लू हाइड्रोजन का उत्पादन कार्बन प्रग्रहण एवं भंडारण, अर्थात कार्बन ऑफसेट (कोई भी गतिविधि जो अन्यत्र उत्सर्जन में कमी प्रदान करके कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की क्षतिपूर्ति करती है।) प्रौद्योगिकी द्वारा किया जाता है।

पूर्ण रूप से अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है जो कार्बन का उत्सर्जन नहीं करता है। यह सर्वाधिक पर्यावरण-हितैषी हाइड्रोजन होता है।


मिशन के बारे में

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, हरित ऊर्जा के संबंध में भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है। इस मिशन का अभिप्राय ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना और दैनिक जीवन में उनके उपयोग को बढ़ावा देना है। यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर भी केंद्रित है। इस मिशन के साथ, भारत की पहलों को नीति, विनियमन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाया जाएगा। हरित हाइड्रोजन का उपयोग करके भारत अपने लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाएगा।

मुख्य उद्देश्य

  • भारत को हरित हाइड्रोजन का केंद्र बनाना और विश्व में हरित हाइड्रोजन का सबसे बड़ा उत्पादक तथा निर्यातक बनाना
  • हरित हाइड्रोजन के साथ-साथ इसके व्युत्पन्न (वित्तीय उत्पाद) के निर्यात के अवसर विकसित करना
  • जीवाश्म ईंधन और आयात किए जाने वाले प्रभरण स्टॉक (फीडस्टॉक—अपरिष्कृत तेल या इसका कोई प्रभाज जिसे उपकरण में प्रक्रमण के लिए भेजा जाता है।) पर निर्भरता कम करना
  • घरेलू विनिर्माण इकाइयां बनाना
  • उद्योग में निवेश को प्रोत्साहित और अधिक व्यावसायिक अवसर सृजित करना
  • रोजगार के अवसर सृजित करना, जिससे आर्थिक संवृद्धि और विकास को बढ़ावा मिले
  • अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना

मिशन का महत्व

यह मिशन हरित हाइड्रोजन जिसे स्वच्छ और हरित ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त किया जाता है और जो एक परिवहन ईंधन के रूप में इसकी वाणिज्यिक व्यवहार्यता को संभव कर सकता है, के उत्पादन पर गंभीरतापूर्वक ध्यान केंद्रित करता है। इसके साथ ही, यह देश की नवीकरणीय ऊर्जा में होने वाली वृद्धि को हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के साथ संबद्ध करने पर भी बल देगा।

भारत में विद्युत उत्पादन मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है, यदि इसके बदले हाइड्रोजन का उपयोग किया जाए तो यह जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण को कम करेगा। इसके अलावा, इससे कोयले के आयात को कम करने के साथ ही तेल की कीमतों में होने वाली वृद्धि को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।

हाइड्रोजन ऊर्जा से परिवहन (भारत के ग्रीनहाउस-गैसों के उत्सर्जन में एक-तिहाई योगदान परिवहन का है), लौह एवं इस्पात, और रासायनिक क्षेत्रों को भी लाभ होगा, जैसा कि यह मिशन इन क्षेत्रों में की जाने वाली प्रायोगिक परियोजनाओं का भी सहयोग करेगा।

यह मिशन अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगा, जैसा कि इस मिशन के माध्यम से भारत पेरिस संधि के तहत वर्ष 2070 तक अपने निवल शून्य कार्बन उत्सर्जन की प्रतिबद्धता को पूरा करने में सक्षम हो सकेगा।


हरित अर्थात ग्रीन हाइड्रोजन का महत्व: हरित हाइड्रोडन का उत्पादन अक्षय ऊर्जा स्रोतों—नवीकरणीय विद्युत के माध्यम से पानी के विद्युत अपघटन द्वारा—की सहायता से किया जाता है। इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना अपेक्षित है, जिससे एक संधारणीय ऊर्जा के भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा।

आज के समय में लोग पर्यवावरणीय मुद्दों के प्रति अधिक जागरूक हैं, तथा पवन, सौर और जलविद्युत सहित नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश कर रहे हैं। जैसा कि ये लगातार उपलब्ध नहीं हो सकते, इसलिए भारी उद्योगों की मांग को पूरा नहीं कर सकते। अतः, इन स्रोतों की कुछ सीमाएं हैं। इसलिए, हाइड्रोजन एक आशाजनक ऊर्जा स्रोत है, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि बहुउद्देशीय भी है।

भारत की बढ़ती आबादी और बढ़ती ऊर्जा मांग को देखते हुए हरित हाइड्रोजन बेहद फायदेमंद हो सकता है। हरित हाइड्रोजन कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के साथ-साथ इन मांगों को पूरा कर सकता है।


मिशन और इसके घटक

अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु इस मिशन को तीन घटकों—(i) भारत में उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन को निर्यात हेतु प्रतिस्पर्धी बनाना तथा घरेलू उपयोग के माध्यम से इसकी मांग उत्पन्न करना; (ii) एक प्रोत्साहन तंत्र के माध्यम से आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करना; तथा (iii) प्रवर्धन और विकास का समर्थन करने हेतु एक सक्षम पारितंत्र का निर्माण करना—के तहत दो चरणों (प्रथम चरण 2022-23 से 2025-26; और दूसरा चरण 2026-27 से 2029-30) में संचालित किया जाएगा।

मिशन के उप-घटकः मिशन के अंतर्गत हरित हाइड्रोजन संक्रमण (साइट) कार्यक्रम के लिए रणनीतिक हस्तक्षेपों के तहत दो वित्तीय प्रोत्साहन तंत्र, अर्थात विद्युत-अपघटक (इलेक्ट्रोलाइजर) के स्वदेशी विनिर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को लक्षित करना, प्रदान किए जाएंगे। मिशन अंतिम उपयोग वाले उभरते क्षेत्रों और उत्पादन के लिए प्रायोगिक परियोजनाओं का सहयोग भी करेगा। इसके अलावा, मिशन के तहत अनुसंधान एवं विकास (स्ट्रैटेजिक हाइड्रोजन इनोवेशन पार्टनरशिप—SHIP) के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी तंत्र की सुविधा भी प्रदान की जाएगी। अनुसंधान एवं विकास संबंधी परियोजनाएं वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की ओर लक्ष्योन्मुख, समयबद्ध, और उपयुक्त रूप से प्रवर्धित होंगी। मिशन के अंतर्गत एक समन्वित कौशल विकास कार्यक्रम भी शुरू किया जाएगा।

मिशन के संभावित परिणाम

  • वर्ष 2030 तक देश में प्रतिवर्ष न्यूनतम 5 मिलियन मीट्रिक टन के ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता के साथ-साथ लगभग 125 गीगावाट की अतिरिक्त संबद्ध नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि;
  • 6 लाख से अधिक रोजगार के अवसरों का सृजन;
  • जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की संचयी कमी;
  • वार्षिक रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 मिलियन मीट्रिक टन की कमी; और
  • इस मिशन पर कुल 8 लाख करोड़ रुपये का निवेश।

हरित हाइड्रोडन और हरित अमोनिया नीति

हरित हाइड्रोडन और हरित अमोनिया को ‘भविष्य का ईंधन’ माना जाता है जो भविष्य में जीवाश्म ईंधनों को प्रतिस्थापित कर सकते हैं। ये देश की संधारणीय ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। अंतरराष्ट्रीय संगठन, पर्यावरणविद, कार्यकर्ता और विश्व भर की सरकारें इस बात पर सहमत हैं कि भूमंडलीय ऊष्मण या वैश्विक तापन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए कुछ अनिवार्य उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

विश्व भर के कई देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर योगदान देने का संकल्प लिया है ताकि ऊर्जा संक्रमण सुचारु रूप से हो सके और उत्सर्जन में उल्लेखनीय ढंग से कमी लाई जा सके। ये देश नेट-जीरो टार्गेट्स (निवल-शून्य लक्ष्य) के लिए प्रतिबद्ध हैं।

हानिकारक उत्सर्जन को मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन ऊर्जा को हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया ऊर्जा में परिवर्तित करके कम किया जा सकता है। इस परिवर्तन को सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा कई नीतिगत उपायों पर विचार किया गया। हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों के लिए ‘ऊर्जा वाहक’ और ‘रासायनिक फीड स्टॉक’ दोनों के रूप में किया जाएगा। इस संबंध में, विद्युत मंत्रालय ने एक हरित हाइड्रोजन नीति निर्धारित की है ताकि संबंधित हितधारक इसका अनुपालन और कार्यान्वयन कर सकें।

हाइड्रोजनऊर्जा का एक उभरता स्रोत

हाइड्रोजन स्वच्छ ईंधन और ऊर्जा का एक वाहक है जिसका उपयोग तरल एवं जीवाश्म ईंधन के संभावित विकल्प के रूप में किया जा सकता है। यह शून्य कार्बन उत्सर्जन करने वाली सामग्री है और हाइड्रोकार्बन (हाइड्रोजन एवं कार्बन के सम्मिश्रण से बने यौगिक), जिनमें शुद्ध कार्बन सामग्री की सीमा 75-85 प्रतिशत तक होती है, के विपरीत ऊर्जा का एक गैर-प्रदूषणकारी स्रोत है।

पृथ्वी पर हाइड्रोजन, जल एवं हाइड्रोकार्बन जैसे जटिल यौगिकों में पाया जाता है, जैसा कि यह ब्रह्मांड में सर्वाधिक व्याप्त तत्व है। चूंकि हाइड्रोजन एक ऊर्जा वाहक है, अतः उपयोग करने से पहले इसे अवश्य ही निर्मित, निष्कर्षित और संग्रहीत किया जाना चाहिए। पारंपरिक दहन इंजनों के विपरीत, जो नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे विषाक्त प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं, हाइड्रोजन ईंधन उपोत्पाद के रूप में केवल जल का उत्पादन करता है।

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) के अनुसार, 2050 तक कुल ऊर्जा खपत का लगभग 6 प्रतिशत हाइड्रोजन से प्राप्त होगा। वर्तमान में, हाइड्रोजन की वैश्विक मांग प्रति वर्ष 70 एमएमटी है। इसमें से 76 प्रतिशत से अधिक प्राकृतिक गैस से, 23 प्रतिशत कोयले से और शेष जल के विद्युत अपघटन से उत्पन्न की जाती है। हाइड्रोजन का प्रमुख उपयोग पेट्रोकेमिकल्स (शैलरासायनिक) और उर्वरक उद्योग में होता है।

हरित हाइड्रोजन संक्रमण (साइट) कार्यक्रम के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप

इस मिशन का मुख्य तत्व साइट कार्यक्रम है, जो हरित हाइड्रोजन पारितंत्र के विकास को सक्षम करेगा। इसके अलावा, यह भारत को ऊर्जा एवं पर्यावरणीय संधारणीयता में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायता करेगा।

यह कार्यक्रम स्पष्ट रूप से मिशन के उद्देश्यों को निरूपित करता है और हाइड्रोजन विकास के विभिन्न पहलुओं के लिए पर्याप्त वित्त आवंटित करता है। इस कार्यक्रम से यह सुस्पष्ट है कि सरकार हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और इसके लिए स्थानीय स्तर पर विद्युत-अपघटक विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रकार, साइट भारत के ऊर्जा परिदृश्य को नया आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साइट का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देकर देश के भीतर ही विद्युत-अपघटक के निर्माण और हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देना है।

पारदर्शिता और उत्तरदायित्व से संबंधित, सरकार द्वारा हरित हाइड्रोजन एवं विद्युत-अपघटक उत्पादन के संबंध में विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं हेतु व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इस प्रकार, हितधारकों को उनके कार्य के लिए एक सुनिश्चित कार्य योजना मिलती है। इसके अलावा, ये दिशा-निर्देश भारत में हरित हाइड्रोजन क्षेत्र के विकास के आधार हैं।

हाइड्रोजन ऊर्जा के संभावित उपयोग

  • उद्योग क्षेत्र: इस क्षेत्र में लोहा और इस्पात के विनिर्माण में कोयला एवं कोक को प्रतिस्थापित कर हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है। इस्पात विनिर्माण के दौरान, वातावरण में अत्यधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जित होता है। हाइड्रोजन उद्योग क्षेत्र को कार्बन मुक्त कर सकता है, जिससे विश्व की जलवायु स्थिति में अत्यधिक बदलाव आएगा।
  • जीवाश्म ईंधन के आयात में कमीः वर्तमान में, मुख्य रूप से ग्रे हाइड्रोजन का उपयोग नाइट्रोजनी उर्वरकों और पेट्रोरसायनों (पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त रसायन) का उत्पादन कर किया जा रहा है। यदि ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रे हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करती है, तो इन क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा, जिससे जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम होगी। इसके अलावा, स्टील उद्योग में हाइड्रोजन का उपयोग कर कोकिंग कोल के आयात को भी कम किया जा सकता है।
    इसी तरह, प्राकृतिक गैस के आयात को कम करने के लिए ग्रीन अमोनिया का उपयोग किया जा सकता है।
  • परिवहन क्षेत्र: हाइड्रोजन ईंधन का उपयोग फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहनों (FCEVs) के परिचालन के लिए किया जाता है। कम दूरी की यात्रा करने वाले कुछ यात्रियों के लिए, बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEVs) सबसे उपयुक्त हैं। लेकिन लंबी दूरी तक भारी भार ढोने के लिए, FCEVs बेहतर हैं।
    BEVs को लिथियम-आयन बैटरी के लिए कोबाल्ट तथा लिथियम की आवश्यकता होती है, जिन्हें आयात करना पड़ता है। हालांकि, हाइड्रोजन ईंधन सेल का उत्पादन घरेलू स्तर पर किया जा सकता है, जो भारत को स्वच्छ परिवहन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा।
  • अक्षय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिएः हाइड्रोजन का उपयोग कर आंतरायिक अक्षय ऊर्जा को संग्रहीत किया जा सकता है ताकि इसका उत्पादन स्थिर हो सके। अधिशेष ऊर्जा को हाइड्रोजन में परिवर्तित किया जा सकता है जिसका उपयोग बाद में ग्रिड समर्थन और अन्य प्रयोजनों हेतु किया जा सकता है।

हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी की चुनौतियां

स्वच्छ ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के उपयोग की अपार संभावनाओं के बाद भी हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना और व्यापक स्तर पर इसका प्रयोग निम्न कारणों से चुनौती बनी हुई हैः

  • हाइड्रोजन, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन, का उत्पादन करना न केवल कठिन है, बल्कि यह अत्यंत महंगी भी है। इसके अलावा, एक अत्यंत हल्का पदार्थ होने के कारण इसका संग्रहण एवं परिवहन करना एक कठिन कार्य होता है, जैसा कि हाइड्रोजन को संग्रहीत करने के लिए पहले इसे तरल और फिर अत्यंत निम्न तापमान पर गैस के रूप में संग्रहीत करना पड़ता है।
  • चूंकि हाइड्रोजन एक गंधहीन गैस है, अतः इसके रिसाव का पता लगाना लगभग असंभव है, जिसके कारण इसे एक जोखिमपूर्ण ईंधन माना जाता है। इसके साथ ही, इसकी अस्थिरता और इसकी उच्च ऊर्जा तत्वों के कारण यह एक अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ है, जिसके कारण इसे विस्फोटक की श्रेणी में रखा जा सकता है।

हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद भारत की अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों और प्राकृतिक तत्वों की प्रचुरता के कारण ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में अन्य देशों की अपेक्षा भारत एक बेहतर स्थिति में है।

भारत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन

  • 2020 में, भारत में हाइड्रोजन की मांग 6 मिलियन टन (एमटी) प्रतिवर्ष थी। इस बात की संभावना है कि 2030 तक हाइड्रोजन की लागत घटकर आधी रह जाएगी।
  • 2050 तक, हाइड्रोजन की मांग 28 एमटी हो जाएगी, अर्थात मौजूदा मांग से पांच गुना। ऐसी मांग का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा संभवतः ग्रीन हाइड्रोजन का होगा।
  • भारत का लक्ष्य जापान, यूरोप और दक्षिण कोरिया को हाइड्रोजन निर्यात करना है।
  • कई प्रमुख बहुराष्ट्रीय निगमों, जैसे कि गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल), इंडियन ऑयल कॉर्पोशन (आईओसी), राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी), रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में उद्यम करने की योजना बनाई है। आरआईएल ने 2035 तक खुद को नेट-जीरो (निवल-शून्य) कार्बन फर्म में बदलने का निर्णय किया है।
  • अभी तक, कुछ उद्योगों ने विभिन्न हाइड्रोजन चालित वाहनों का निर्माण किया है। उदाहरण के लिए, आईआईटी दिल्ली ने महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ मिलकर दो हाइड्रोजन-ईंधन वाले आंतरिक दहन इंजन बसों का निर्माण किया; टाटा मोटर्स लिमिटेड ने छह-सेल बसें विकसित की; और आइओसी ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्रा के साथ मिलकर एच-सीएनजी, अर्थात हाइड्रोजन युक्त सीएनजी से चलने वाली 50 बसों का निमार्ण किया है।

ग्रीन हाइड्रोजन पहलें

भारत का वर्ष 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में एक स्वावलंबी देश के रूप में खुद को बदलने का लक्ष्य है, जिसमें पेट्रोलियम और जीवाश्म ईंधनों के बदले एक वैकल्पिक ईंधन के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन एक सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत पहले से ही तत्पर है, जैसा कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, हाइड्रोजन और ईंधन सेल के विकास के लिए शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान और विकास संगठनों, तथा उद्योग में कई परियोजनाओं का समर्थन कर रहा है। इसके अलावा, सक्रिय रूप से 14 अनुसंधान एवं विकास पहलें की जा रही हैं। इस बीच, 18 प्रतिशत हाइड्रोजन और सीएनजी (एचसीएनजी) के स्वचालित मिश्रण को मंजूरी दी गई है।

एक सहायक नियामक ढांचे के रूप में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2022 में हाइड्रोजन ईंधन सेल-आधारित वाहनों को सुरक्षा मूल्यांकन मानकों के अंतर्गत शामिल करने के लिए केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की। इसके अलावा, देश में आईआईटी तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) जैसे कई संस्थानों द्वारा हाइड्रोजन उत्पादन के विभिन्न पहलुओं पर परीक्षण व अध्ययन किए जा रहे हैं। केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं, अपितु निजी उद्यमों द्वारा भी हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में अपनाने हेतु परीक्षण तथा निवेश किए जा रहे हैं।


निष्कर्ष

अन्य लाभों के अलावा, भारत का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन भारत को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाएगा। यह अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कार्बन मुक्त भी करेगा। इस मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए, केंद्र और राज्य सरकारें, उनके संबंधित विभाग, मंत्रालय, संस्थान और एजेंसियां एक दूसरे के साथ समन्वय में काम करेंगी। मिशन का समन्वय और क्रियान्वयन नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा किया जाएगा।

उपर्युक्त कारणों से ग्रीन और ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा, कई प्रमुख संगठन ऐसी तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो प्लास्टिक और जैव अपशिष्ट को हाइड्रोजन में बदलने में सक्षम है। इस प्रकार की तकनीक दो उद्देश्यों को पूरा करेगी—ऊर्जा उत्पादन और अपशिष्ट प्रबंधन।

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