संदर्भ
2023 में, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा लोक सभा की आचार समिति के समक्ष उपस्थित हुई जो भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा लगाए गए आरोपों कि मोइत्रा ने व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी की ओर से लोक सभा में प्रश्न पूछने के लिए उक्त व्यवसायी से रिश्वत और लाभ लिया था, के संबंध में पूछताछ कर रही थी।
आचार समिति के बारे में
सांसदों के नैतिकता और आचार संबंधी आचरण के निरीक्षण के उद्देश्य से अगस्त 2015 में लोक सभा आचार समिति का गठन किया गया था। इससे पहले वर्ष 2000 में, लोक सभा द्वारा एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया गया था, जिसे बाद में स्थायी समिति का दर्जा दिया गया था, जिसके फलस्वरूप लोक सभा की आचार समिति का गठन हुआ। यह लोक सभा के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में कार्य करती है और भारत में सांसदों के नैतिकता और आचार संबंधी आचरण की निगरानी करने में सहायक है। यह समिति इन सदस्यों के विरुद्ध कई नैतिक अपराधों से संबंधित शिकायतों से निपटने के लिए भी अधिकृत है।
लोक सभा अध्यक्ष एक वर्ष की अवधि के लिए आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति करता है। लोक सभा की आचार समिति में विभिन्न राजनीतिक दलों के 15 सदस्य शामिल होते हैं। 2023 में, इन सदस्यों में समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर सहित भाजपा के अपराजिता सारंगी, डॉ. राजदीप रॉय, डॉ. सुभाष भामरे, सुमेधानंद सरस्वती, सुनीता दुग्गल और विष्णु दत्त शर्मा; वाईएसआर कांग्रेस के बालाशोवरी वल्लभानेनी; कांग्रेस के एन. उत्तम कुमार रेड्डी, परनीत कौर और वी. वैथिलिंगम; बसपा के कुंवर दानिश अली; शिवसेना के हेमंत गोडसे; सीपीआई (एम) के पी. आर. नटराजन; और जद (यू) के गिरिधारी यादव शामिल थे।
पृष्ठभूमि: सांसदों के आचार संबंधी आचरण को बनाए रखने के उद्देश्य वाली, लोक सभा की आचार समिति की उत्पत्ति वर्ष 1996 में नई दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में हुई चर्चाओं के उपरांत हुई। यद्यपि इस सम्मेलन के दौरान राज्य सभा और लोक सभा दोनों के लिए आचार समिति का गठन करने की अवधारणा का प्रस्ताव रखा गया था, तथापि कई वर्षों के बाद ही आचार समिति का गठन हुआ।
सर्वप्रथम, यह राज्य सभा थी जिसने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए। राज्य सभा की आचार समिति की स्थापना, भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति के. आर. नारायणन द्वारा 4 मार्च, 1997 को की गई थी, और 30 मई, 1997 को इसका संचालन शुरू हुआ। विशेषाधिकार समिति द्वारा प्रक्रिया और अन्य संबंधित मामलों के संबंध में पालन किए जाने वाले नियम आचार समिति पर भी लागू हो गए। तथापि, राज्य सभा के सभापति के अनुसार, आचार समिति पर लागू नियमों में कुछ संशोधन हो सकते हैं या कभी-कभी ये भिन्न हो सकते हैं।
हालांकि, लोक सभा की आचार समिति के गठन में कई वर्ष लग गए। 1997 में, 11वीं लोक सभा के दौरान, लोक सभा की विशेषाधिकार समिति द्वारा गठित एक अध्ययन समूह ने संसदीय आचार, विशेषाधिकार और ऐसे अन्य मामलों के संदर्भ में अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जानने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का दौरा किया। परिणामस्वरूप, इस समूह ने इन देशों में संसदीय आचार और विशेषाधिकारों के विभिन्न पहलुओं की सूचना दी। इसने एक आचार समिति की आवश्यकता को भी विनिर्दिष्ट किया और इसके गठन का सुझाव दिया। लेकिन लोक सभा तब इसे मूर्त रूप नहीं दे सकी, जैसा कि इसका विघटन हो चुका था। 13वीं लोक सभा के दौरान ही औपचारिक रूप से विशेषाधिकार समिति के समक्ष एक आचार समिति के गठन का प्रस्ताव रखा गया, जिसमें कहा गया था कि लोक सभा में एक अलग आचार समिति की स्थापना की जानी चाहिए। इसलिए, 16 मई, 2000 को, 13वीं लोक सभा के दिवंगत अध्यक्ष जी. एम. सी. बालयोगी द्वारा एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया गया। तथापि, 2015 तक इस समिति को स्थायी दर्जा नहीं दिया गया था; उसके बाद, इसे लोक सभा के सदस्यों के आचार संबंधी आचरण के निरीक्षण की जिम्मेदारी दी गई।
इसके कार्य
संसद के मानकों को बनाए रखने के लिए, आचार समिति के लिए आवश्यक है कि वह
- समिति के सदस्यों के लिए आचार संहिता का एक सेट निर्धारित करे;
- इस संहिता का पुनर्विलोकन और तदनुसार इसे नियमित आधार पर संशोधित करे;
- सदस्यों के आचार संबंधी और नैतिक आचरण का निरीक्षण करे; तथा
- आचार और नैतिक मानक के संदर्भ में समिति के समक्ष प्रस्तुत किसी भी कदाचार के मामलों (या शिकायतों) का विश्लेषण करे जिससे उचित सिफारिशें की जा सकें।
आचार समिति को भेजी गई शिकायतों का वर्णन किसी अपशब्द के प्रयोग के बिना शिष्ट भाषा में किया जाना चाहिए। शिकायत में हिंदी या अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा का प्रयोग नहीं किया जाएगा। तथापि, यदि शिकायत में किसी अन्य भाषा का प्रयोग किया गया हो, तो उसके हिंदी या अंग्रेजी में अनुवादित संस्करण का भी उल्लेख किया जाना चाहिए। शिकायत के अंत में शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए।
शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
देश का कोई भी नागरिक लोक सभा के किसी भी सदस्य के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकता है। तथापि, शिकायतकर्ता के लिए लोक सभा के किसी सांसद की सहायता लेना आवश्यक है। इसके अलावा, उसे एक हलफनामे के साथ कथित कदाचार के सुसंगत साक्ष्य भी उपलब्ध कराने होंगे। हलफनामे में घोषित किया जाना चाहिए कि शिकायत वास्तविक है और कि यह तुच्छ या नागवार नहीं है। हालांकि, यदि किसी सांसद द्वारा शिकायत दायर की जाती है, तो उसे कोई हलफनामा जमा करने की आवश्यकता नहीं है।
प्रारंभिक जांच पूरी होने पर प्रथमदृष्टया मामले के अभाव में, समिति इस मामले को आगे नहीं ले जा सकेगी। इसके अलावा, मीडिया रिपोर्टों या न्यायाधीन मामलों के आधार पर दायर शिकायतों पर समिति द्वारा विचार नहीं किया जा सकता है। तथापि, प्रथमदृष्टया जांच करने के बाद, समिति शिकायत का विश्लेषण करती है और फिर अपनी सिफारिशें एक रिपोर्ट के रूप में देती है।
इसके बाद समिति द्वारा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपी जाती है। अध्यक्ष सदन की सहमति लेता है कि रिपोर्ट पर चर्चा होनी चाहिए या नहीं और तदनुसार, इसे सदन के पटल पर रखा जाता है। इसके अलावा, सरकार ने प्रावधान किया है कि इस पर आधे घंटे की चर्चा की जा सकती है।
आचार समिति और विशेषाधिकार समिति के बीच अंतर
लोक सभा की आचार समिति केवल सांसदों के कदाचार से संबंधित मुद्दों को संबोधित करती है; जबकि, विशेषाधिकार समिति एक सांसद के कदाचार के मुद्दों के अलावा कई अन्य मुद्दों को भी संबोधित करती है, जैसे कि संसद के प्राधिकार, स्वतंत्रता और गरिमा से संबद्ध मुद्दे। विशेषाधिकार समिति को इन विशेषाधिकारों को संरक्षित करने की आवश्यकता होती है, जैसा कि न केवल व्यक्तिगत रूप से सांसद बल्कि संपूर्ण सदन भी इन विशेषाधिकारों का हकदार है। विशेषाधिकार समिति सांसदों और गैर-सांसदों दोनों के मुद्दों से निपटने के लिए अधिकृत है। अर्थात, यह गैर-सांसद या सांसद दोनों से संबद्ध कदाचार के मामलों अथवा संसद की गरिमा को नुकसान पहुंचाने वाले मामलों या संसद के प्राधिकार को खतरे में डालने वाले मामलों की जांच कर सकती है।
इस प्रकार, उपर्युक्त में से कोई भी समिति किसी सांसद के विरुद्ध कदाचार के आरोप से निपट सकती है। तथापि, विशेषाधिकार समिति द्वारा आरोपों के अधिक गंभीर मामलों को निपटाया जाता है।
निष्कर्ष
आचार समिति संसद के मानकों एवं मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। तथापि, यह तभी प्रभावी हो सकता है जब सांसद देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत उच्चतम नैतिक आचरण का पालन करें।
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