परिचय
फरवरी 2024 की शुरुआत में, लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) विधेयक, 2024, अर्थात 2024 का विधेयक संख्यांक 15, को लोक सभा और राज्य सभा दोनों द्वारा पारित किया गया था, और अब यह एक अधिनियम है। इस अधिनियम का मुख्य प्रयोजन लोक परीक्षाओं में ‘अनुचित साधनों’ के प्रयोग को रोकना और परीक्षा प्रणाली को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और विश्वसनीय बनाना है। यह अधिनियम एक मॉडल ड्राफ्ट (प्रारंभिक प्रारूप) के रूप में कार्य करेगा जिसे राज्य अपने विवेक से अपना सकते हैं, और अपनी किसी भूल, जिसे वे उचित समझें, को सुधार सकते हैं।
अधिनियम की आवश्यकता
भारत सरकार ने निम्नलिखित कारणों से इस अधिनियम को लागू करने का निर्णय लिया:
पेपर लीक की आवृत्ति: पिछले कुछ वर्षों में भर्ती परीक्षाओं में प्रश्नपत्र को प्रकट करने (लीक) के कई मामले सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, लगभग 16 राज्यों में लीक के ऐसे 48 मामले सामने आए हैं, जिसके कारण विभिन्न सरकारी पदों की भर्ती प्रक्रिया बाधित हुई। परिणामस्वरूप, लगभग 1.2 लाख पदों के लिए आवेदन करने वाले लगभग 1.51 करोड़ आवेदकों का जीवन प्रभावित हुआ।
भर्ती प्रक्रिया पर प्रभाव: लोक परीक्षाओं में अनाचार के विभिन्न मामले देखे गए हैं। परिणामस्वरूप, कई बार इन परीक्षाओं में देरी हुई या उन्हें रद्द कर दिया गया, जिसका देश के युवाओं के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन अनाचारों को रोकने हेतु कोई विनिर्दिष्ट कानून न होने के कारण इनसे निपटा नहीं जा सका।
व्यापक विधान की आवश्यकता: लोक परीक्षाओं में अनाचार से निपटने के लिए एक व्यापक केंद्रीय विधान की कमी ने एक नए विधेयक की पुरःस्थापना को आवश्यक बना दिया। इसका उद्देश्य परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का लाभ उठाने वाले तत्वों की पहचान करना और प्रभावी ढंग से उनसे निपटना है। यह अधिनियम युवाओं को आश्वस्त करना चाहता है कि उनके ईमानदार और वास्तविक प्रयासों को उचित प्रतिफल मिलेगा, जिससे उनके भविष्य की संभावनाओं की संरक्षा सुनिश्चित होगी।
अनाचार के विरुद्ध रोकथाम: यह अधिनियम व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों को विधिपूर्वक मौद्रिक या अनुचित लाभ के लिए लोक परीक्षा प्रणाली को बाधित करने वाली अनुचित रीतियों को अपनाने से रोकने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य ऐसे अनाचार के विरुद्ध प्रभावी प्रवर्तन के लिए तंत्र स्थापित करना है।
एक मॉडल ड्राफ्ट के रूप में भूमिका: एक बार विधि बन जाने के बाद, यह अधिनियम राज्यों द्वारा अपने विवेक के आधार पर इसे अपनाने के लिए एक प्रारंभिक प्रारूप के रूप में कार्य करेगा। इससे राज्यों को आपराधिक तत्वों को उनकी संबद्ध राज्य स्तरीय लोक परीक्षाओं के संचालन में बाधा डालने से रोकने में सहायता मिलेगी।
अधिनियम के बारे में: इस अधिनियम में ‘लोक परीक्षा’ शब्द को अनुसूची में यथा विनिर्दिष्ट लोक परीक्षा प्राधिकरण द्वारा या केंद्रीय सरकार द्वारा यथा अधिसूचित ऐसे अन्य प्राधिकरण द्वारा संचालित किसी परीक्षा के रूप में परिभाषित किया गया है।
अधिनियम के दायरे में आने वाली परीक्षाओं में शामिल हैं:
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षाएं
- सिविल सेवा परीक्षा
- सम्मिलित रक्षा सेवा परीक्षा
- सम्मिलित चिकित्सा सेवा परीक्षा
- इंजीनियरी सेवा परीक्षा और विभिन्न केंद्रीय सरकारी सेवाओं में भर्ती के लिए यूपीएससी द्वारा आयोजित कोई अन्य परीक्षाएं।
कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षाएं
- समूह ग (C) (गैर-तकनीकी) पदों के लिए भर्ती
- समूह ख (B) (गैर-राजपत्रित) पदों के लिए भर्ती और केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए एसएससी द्वारा आयोजित कोई अन्य परीक्षाएं।
रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) की परीक्षाएं
- भारतीय रेलवे में समूह ग (C) और घ (D) कर्मचारियों की भर्ती और भारतीय रेलवे में भर्ती के लिए आरआरबी द्वारा आयोजित कोई अन्य परीक्षाएं।
इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सिलेक्शन (आईबीपीएस) की परीक्षाएं
- राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए सभी स्तरों पर भर्ती
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के लिए सभी स्तरों पर भर्ती और बैंकिंग क्षेत्र की नौकरियों के लिए आईबीपीएस द्वारा आयोजित कोई अन्य परीक्षाएं।
कर्मचारिवृंद की भर्ती करने के लिए केंद्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग और उनके संबद्ध अधीनस्थ कार्यालय की परीक्षाएं
राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) की परीक्षाएं
- संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मुख्य
- राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) यूजी
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी-नेट)
- सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और कार्यक्रमों के लिए एनटीए द्वारा आयोजित कोई अन्य परीक्षाएं।
इस अधिनियम की अनुसूची में, जब भी केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के माध्यम से आवश्यक हो, नए प्राधिकरणों को शामिल किया जा सकता है।
अधिनियम के मुख्य उपबंध
यह अधिनियम लोक परीक्षाओं से संबंधित अपराधों को निर्दिष्ट करता है। अधिनियम के तहत, किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या संस्थानों द्वारा अनुचित साधनों के प्रयोग के लिए उकसाने हेतु किसी भी साजिश पर प्रतिबंध लगाया गया है। लोक परीक्षाओं में “धनीय या सदोष अभिलाभ के लिए’ अनुचित साधनों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया हैः
- प्रश्नपत्र, उत्तर कुंजी या उसके किसी भाग का अनधिकृत प्रकटीकरण या प्रसार
- प्रश्नपत्र या उत्तर कुंजी को प्रकट करने (लीक) में सहायता करने के लिए दूसरों के साथ भागीदारी करना
- उचित प्राधिकारी के बिना प्रश्नपत्र या ऑप्टिकल मार्क रिकग्निशन (ओएमआर) रिस्पांस शीट तक पहुंचना या उसे अपने कब्जे में लेना
- किसी परीक्षा के दौरान किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा एक या अधिक प्रश्नों का हल प्रदान करना
- लोक परीक्षा में किसी भी अनधिकृत रीति से अभ्यर्थी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करना
- ओएमआर रिस्पांस शीटों सहित उत्तर पुस्तिकाओं के साथ छेड़छाड़ करना
- लोक परीक्षा संचालित कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित मानदंडों या मानकों का जानबूझकर अतिक्रमण करना
- किसी लोक परीक्षा में अभ्यर्थियों का लघु सूचीयन करने या किसी अभ्यर्थी की मेरिट या रैंक को अंतिम रूप दिए जाने के लिए किसी आवश्यक दस्तावेज के साथ छेड़छाड़ करना
- किसी लोक परीक्षा के संचालन में अनुचित साधनों को सुकर बनाने के लिए सुरक्षा उपायों का जानबूझकर उल्लंघन करना
- कंप्यूटर नेटवर्क या किसी कंप्यूटर संसाधन या कंप्यूटर प्रणाली के साथ छेड़छाड़ करना
- परीक्षा में अनुचित साधनों को अंगीकार करने को सुकर बनाने के लिए अभ्यर्थियों के बैठने की व्यवस्था, तारीखों और पालियों के आबंटन में हेर-फेर करना
- लोक परीक्षा प्राधिकरण या सेवा प्रदाता या सरकार के किसी प्राधिकृत अभिकरण में संबद्ध व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता को खतरे में डालना या सदोष परिरोध करना; या लोक परीक्षा के संचालन में बाधा डालना
- धोखा देने या धनीय लाभ के लिए जाली वेबसाइट बनाना
- धोखा देने या धनीय लाभ के लिए जाली परीक्षा संचालित करना, जाली प्रवेश पत्र या प्रस्ताव पत्र जारी करना
इन अपराधों में लोक परीक्षाओं की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता से समझौता करने के उद्देश्य से की जाने वाली कई तरह की गतिविधियां शामिल हैं, जिनमें ऐसे अनाचारों को रोकने और परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। यद्यपि, ये अपराध धनीय या सदोष अभिलाभ के लिए उपर्युक्त कृत्यों तक निर्बंधित नहीं हैं।
अधिनियम के अनुसार, परीक्षा केंद्रों में अनधिकृत लोगों का प्रवेश प्रतिषिद्ध है ताकि व्यवधानों को रोका जा सके। इसके अलावा, विनिर्दिष्ट समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का प्रकटीकरण भी वर्जित है।
अपराधों के लिए दंड
अधिनियम यह प्रावधान करता है कि इसके अंतर्गत उल्लिखित सभी अपराध संज्ञेय, अजमानतीय और अशमनीय होंगे। इस अधिनियम के अधीन अनुचित साधनों और अपराधों में संलिप्त व्यक्ति ऐसे कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी किंतु जो पांच वर्ष की हो सकेगी और जुर्माने से, जो दस लाख रुपये तक हो सकेगा, से दंडित किया जाएगा।
यदि अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन होता है, तो सेवा प्रदाताओं का यह कर्तव्य है कि वे अभियुक्त व्यक्तियों या संस्था के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराएं और साथ ही संबंधित परीक्षा प्राधिकरण को सूचित करें। यदि ऐसी घटनाओं की सूचना पुलिस और संबंधित प्राधिकरण को नहीं दी जाती है, तो इसे अपराध माना जाएगा। हालांकि, यदि सेवा प्रदाता स्वयं ही आरोपी हो, जिसने अपराध किया है, तो पुलिस को इसकी सूचना देना परीक्षा प्राधिकरण की जिम्मेदारी है।
अधिनियम के तहत, सेवा प्रदाता परीक्षा प्राधिकरण की अनुमति के बिना स्वेच्छा से परीक्षा केंद्र नहीं बदल सकते हैं। इस प्रकार से परीक्षा केंद्र बदलना निषिद्ध है। जिस सेवा प्रदाता पर इस प्रकार के अपराध का आरोप लगाया जाता है, उसे अधिकतम एक करोड़ रुपये के अर्थदंड की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा, सेवा प्रदाता को परीक्षा की यथोचित लागत का भुगतान करना होगा। इनके अलावा, ऐसे सेवा प्रदाता को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और वह चार वर्ष की अवधि के लिए लोक परीक्षा आयोजित करने की स्थिति में नहीं होगा।
सेवा प्रदाता से तात्पर्य ऐसी कंपनी से है जो लोक परीक्षा प्राधिकरण को इंटरनेट, कंप्यूटर संसाधनों और अन्य ऐसी सेवाओं तक पहुंच प्रदान करती है।
यदि सेवा प्रदाता अपने ज्येष्ठ प्रबंधन या उसके भारसाधक व्यक्तियों की सहमति से स्टाफ या निदेशक की अगुवाई में अपराध करता है, तो वह व्यक्ति 3-10 वर्ष के कारावास और लगभग एक करोड़ रुपये के जुर्माने का दायी होगा।
संगठित अपराधों के लिए अधिक सजा का प्रावधान किया गया है। संगठित अपराध से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा लोक परीक्षाओं से संबद्ध अपने निहित स्वार्थ हेतु की गई अवैध कार्रवाई अभिप्रेत है। ऐसे व्यक्तियों को 5-10 वर्ष के कारावास और न्यूनतम एक करोड़ रुपये जुर्माना देना होगा।
इसी प्रकार से, यदि किसी संगठन पर संगठित अपराध करने का आरोप हो, तो सरकार उसकी संपत्ति जब्त करेगी और उससे परीक्षा की लागत के अनुपात में व्यय भी देना होगा।
जुर्माना न देने की स्थिति में भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अनुसार अतिरिक्त कारावास का दंड दिया जाएगा। हालांकि, भारतीय न्याय संहिता, 2023 के लागू होने तक, इस अधिनियम के स्थान पर भारतीय दंड संहिता के उपबंध लागू होंगे।
जांच और अन्वेषण
अधिनियम में अपराधों की प्रकृति बताई गई है। इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट सभी अपराधों में जमानत नहीं दी जा सकती और न ही शमन किया जा सकता, तथा वे अभिज्ञेय होते हैं, अर्थात गिरफ्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता नहीं होती या न्यायालय की अनुमति के अभाव में भी जांच शुरू की जा सकती है। हालांकि, यदि अभियुक्त यह सिद्ध करने में सक्षम हो कि उसने कोई कृत्य करते समय या कोई निर्णय लेते समय उपयुक्त सावधानी बरती थी, तो ऐसे कृत्य को अपराध नहीं माना जाएगा। अधिनियम में निर्दिष्ट अपराधों की जांच पुलिस उप-अधीक्षक या पुलिस सहायक आयुक्त (एसीपी) के अन्यून पंक्ति के अधिकारी द्वारा की जाएगी। इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा अन्वेषण को किसी केंद्रीय अन्वेषण अभिकरण को सौंपा जा सकता है।
आपराधिक विधि (संशोधन) अध्यादेश, 1944 में लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) अधिनियम, 2024 से संबंधित अपराधों के संबंध में एक अतिरिक्त उपबंध अंतःस्थापित किया गया है। इसका तात्पर्य है कि उक्त अधिनियम के किसी भी उल्लंघन को अब अध्यादेश के तहत दंडनीय अपराध माना जाएगा।
अधिनियम से संबंधित मुद्दे
राज्य सरकारों का विवेकाधिकार: जैसा कि इस अधिनियम को अपनाने का विवेकाधिकार राज्य सरकारों को दिया गया है, जबकि यह उनके लिए एक ‘मॉडल ड्राफ्ट’ के रूप में कार्य करता है, इसलिए इसको विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रीतियों से लागू किया जा सकता है। परिणामस्वरूप, विधि लोक परीक्षाओं की समग्रता को बनाए रखने में उतनी कुशल नहीं भी हो सकती, जितना कि अपेक्षित है।
अनुशास्तियों में खामियां: दंड से बचने के लिए अधिनियम के कुछ उपबंधों का दोहन किए जाने की संभावना है। उदाहरणार्थ, यदि कोई सेवा प्रदाता लोक परीक्षाओं के संचालन में अनुचित साधनों का प्रयोग करता है, और उस पर लगाया गया जुर्माना ऐसे साधनों से प्राप्त होने वाले धनीय अभिलाभ के समतुल्य नहीं है, तो यह ऐसी निवारण स्थिति से निपटने में कुशल नहीं भी हो सकता है।
विधिक चुनौतियों का सामना करना: अपराधों की प्रकृति, अर्थात संज्ञेय, अजमानतीय और अशमनीय अपराधों, के संदर्भ में अधिनियम के उपबंध के कारण कुछ विधिक चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। यह विमर्श का विषय है कि ये कठोर उपाय अपराधों की गंभीरता के अनुपात में हैं या नहीं। यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या ये उपाय प्राकृतिक न्याय की विचारधाराओं का अनुपालन करते हैं।
निष्कर्ष
लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) अधिनियम, 2024 का कार्यान्वयन भारत सरकार द्वारा लिया गया एक ऐतिहासिक कदम है और लोक परीक्षाओं में अवैध कार्य के प्रयोग की जांच करता है। यह अभ्यर्थियों को निष्पक्ष और प्रदर्शन-संचालित व्यवस्था प्रदान करने के सरकार के उद्देश्य को प्रकट करता है। यह अनाचार से निपटने और लोक परीक्षाओं की प्रामाणिकता को कायम रखने पर केंद्रित है। अंततः, यह देश भर के सभी आकांक्षी अभ्यर्थियों के लिए लाभदायक होगा।
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