परिचय
बहुराज्य सहकारी सोसाइटी (संशोधन) अधिनियम, 2023 का उद्देश्य सहकारी समितियों के कार्यकरण में पारदर्शिता लाकर, नियमित अंतराल पर चुनावों को सुगम बनाकर और कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए विशिष्ट मानदंड स्थापित कर उन्हें सशक्त बनाना है, ताकि पक्षपात को रोका जा सके। यह संविधान के भाग 9ख में उल्लिखित प्रावधानों का अनुपालन करने और सहकारी समितियों के प्रशासन एवं कार्यकरण के मुद्दों से निपटने पर केंद्रित है। संशोधन अधिनियम 2023 बहुराज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002 में संशोधन करता है।
सहकारी और बहुराज्य सहकारी समितियां क्या हैं?
सहकारिता या सहकारी समितियां समान आवश्यकताओं एवं आर्थिक हितों वाले लोगों के समूह हैं, जो स्वैच्छिक रूप से स्वयं सहायता और पारस्परिक सहायता के साथ-साथ समाज के अन्य वर्गों की मदद के लिए एकजुट होते हैं। ये लोकतांत्रिक और स्वतंत्र संघ हैं जिन्हें इनके सदस्यों द्वारा प्रशासित किया जाता है। इन्हीं सदस्यों द्वारा सभी नीतियां तैयार की जाती हैं और सभी निर्णय लिए जाते हैं। सहकारी समितियों के कुछ उदाहरण इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) और अमूल डेयरी हैं।
बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) ऐसी सहकारी समितियां हैं जो दो या दो से अधिक राज्यों में संचालित होती हैं। ये विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर सकती हैं, जैसे कृषि, मुर्गीपालन, कपड़ा, विपणन आदि। उदाहरण के लिए, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) विभिन्न राज्यों के किसानों से अनाज प्राप्त करता है। बहुराज्य सहकारी समितियों के अन्य उदाहरण इफको, राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED—नाफेड), ब्रिटिश काउंसिल आदि हैं। बहुराज्य सहकारी समितियां, बहुराज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अनुसार बनाई और संचालित की जाती हैं।
सहकारी समितियों की आवश्यकता
सहकारी समितियां सामुदायिक विकास के कई पक्षों को समाविष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए, पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) में सहकारी समितियों की स्थापना पर जोर दिया गया था।
सहकारिता के संबंध में संविधान क्या कहता है?
सतानवेवें संशोधन (2011 में) के साथ, अनुच्छेद 43ख (राज्य के नीति निदेशक तत्व) को भारतीय संविधान में अंतःस्थापित किया गया था। यह अभिकथित करता है कि निम्नलिखित सुविधाएं देना राज्यों का उत्तरदायित्व हैः
- सहकारी समितियां बनाना;
- उनकी स्वतंत्र कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना;
- उनके लोकतांत्रिक संचालन को प्रोत्साहित करना; और
- सहकारी समितियों को पेशेवर ढंग से प्रबंधित करना।
सहकारी समितियों की कार्यप्रणाली से संबंधित समस्याएं
सहकारी समितियों को अपने कार्यों के संबंध में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ समस्याओं का उल्लेख नीचे किया गया हैः
- उचित शासन का अभाव है।
- सहकारी समितियों का राजनीतिकरण कर दिया गया है, और उनके कामकाज में सरकार की अत्यधिक भूमिका होती है।
- सक्रिय सदस्यता सुनिश्चित नहीं है।
- पूंजी निर्माण पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
- सक्षम पेशेवर इन समितियों में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं।
- सहकारी बोर्डों के चुनाव अकसर अनिश्चित काल तक विलंबित रहते हैं।
बहुराज्य सहकारी सोसाइटी (संशोधन) अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान
- बचत-उधार (थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट) व्यवसाय में शामिल एमएससीएस का वर्गीकरण उनकी जमा राशि के आधार पर सूक्ष्म, लघु, मध्यम और वृहद सहित विभिन्न श्रेणियों में किया जाएगा।
- एमएससीएस प्रतिभूति के रूप में रखे गए अपने स्वयं के शेयरों के बदले में निधि या ऋण जारी नहीं कर सकते।
- एक एमएससीएस किसी सहकारी समिति में केंद्र सरकार (या राज्य सरकार, या राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, या सरकार या किसी सरकारी कंपनी के स्वामित्व वाले किसी भी निगम) द्वारा धारित शेयरों को केवल उनकी पूर्व अनुमति के साथ भुना सकता है। हालांकि, 2002 का अधिनियम उल्लेख करता है कि एमएससीएस ऐसे शेयरों को सोसाइटी के उपनियमों के अधीन भुना सकता है।
- सभी एमएससीएस सहकारी शिक्षा कोष में, जिसे केंद्र सरकार द्वारा विनियमित किया जाता है, एक निश्चित राशि का योगदान देंगे। इस कोष का प्रमुख सहकारिता मंत्रालय का सचिव होगा। इस निश्चित राशि का निर्माण ऐसी समितियों द्वारा प्रत्येक वर्ष अर्जित निवल लाभ के एक प्रतिशत से होगा। इसके अलावा, इसे संबंधित वित्तीय वर्ष के समापन से छह महीने के भीतर जमा किया जाएगा।
- केंद्र सरकार सदस्यों द्वारा की गई शिकायतों के निवारण के लिए एक या एक से अधिक सहकारी लोकपाल नियुक्त करने के लिए उत्तरदायी है। ऐसे लोकपाल की क्षेत्रीय अधिकारिता केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जाएगी। लोकपाल द्वारा जांच और निर्णय की पूरी प्रक्रिया शिकायत दर्ज होने के तीन महीने के भीतर पूरी की जाएगी। यदि पीड़ित सदस्य लोकपाल के निर्देशों से संतुष्ट न हो, तो वह एक महीने के भीतर उनके खिलाफ केंद्रीय रजिस्ट्रार (केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त) के पास अपील कर सकता है।
- धारा 106 की उपधारा (1) के तहत, यदि कोई सदस्य सूचना प्राप्त करना चाहता है, तो उसे सहकारी सूचना अधिकारी (सीआईओ) को लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से एक आवेदन करना होगा। आवेदन शुल्क की राशि, सूचना साझा करने के लिए अन्य शुल्क एवं भुगतान की विधि के बारे में सूचना का अधिकार (शुल्क और लागत का विनियमन) नियम, 2005 में वर्णन किया गया है।
- विभिन्न स्तरों पर कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक उद्देश्यपूर्ण, पारदर्शी और प्रचलित प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया का प्रयोग किया जाएगा। ऐसी प्रक्रिया में समिति के उपनियमों में निर्दिष्ट शैक्षिक और अनुभव मानदंड शामिल होंगे।
- जिस व्यक्ति को गैर-क्रेडिट एमएससीएस के मुख्य कार्यकारी (सीई) के रूप में नियुक्त किया जाएगा, उसे निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना चाहिएः
- उसके पास वाणिज्य, मानविकी, विधि, कृषि-व्यवसाय प्रबंधन, मत्स्य प्रबंधन, सहकारी व्यवसाय प्रबंधन, डेयरी-क्षेत्र प्रबंधन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, लागत लेखा, चार्टर्ड अकाउंटेंसी, या किसी अन्य प्रासंगिक क्षेत्र में स्नातक की डिग्री या डिप्लोमा होना चाहिए।
- उसके पास सहकारी क्षेत्र में कम से कम तीन वर्ष का कार्य अनुभव होना चाहिए।
- यदि बोर्ड के एक-चौथाई सदस्यों द्वारा बैठक की मांग की गई हो, तो बोर्ड की बैठक आयोजित करना मुख्य कार्यकारी की जिम्मेदारी है।
- यदि मुख्य कार्यकारी 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका हो, तो उसे इस पद से इस्तीफा देना होगा। हालांकि, केंद्रीय रजिस्ट्रार की पूर्व अनुमति से, वह 70 वर्ष का होने के बाद भी सीई के रूप में कार्य कर सकता है। इसके अलावा, एक विशेष प्रस्ताव पारित करना होगा, जिसमें इस प्रस्ताव के नोटिस के साथ व्याख्यात्मक विवरण शामिल हो। यह ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति को न्यायोचित ठहराने के लिए एक साक्ष्य के रूप में काम करेगा।
- एमएससीएस के बोर्डों के निर्वाचन का आयोजन और विनियमन करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए। प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य शामिल होंगे। इन सभी की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति की सहमति से की जाएगी। 2002 के अधिनियम के अनुसार, बहुराज्य सहकारी समिति का मौजूदा बोर्ड ऐसे चुनाव का आयोजन करता था।
- सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण एवं विकास कोष की स्थापना की जाएगी। लाभकारी एमएससीएस (अर्थात, वे सहकारी समितियां जिन्होंने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में लाभ अर्जित किया है) के लिए इस कोष में एक करोड़ रुपये या अपने शुद्ध लाभ का एक प्रतिशत, जो भी कम हो, का योगदान करना आवश्यक है। इस कोष का उद्देश्य रुग्ण एमएससीएस को सहायता एवं समर्थन प्रदान करना है।
एक रुग्ण एमएससीएस ऐसी सहकारी समिति को संदर्भित करता है जिसे पिछले दो वित्तीय वर्षों में नकद घाटा हुआ है और जिसका कुल घाटा उसकी चुकता पूंजी, मुक्त आरक्षित निधियों और अधिशेष के योग के समतुल्य या उससे अधिक हो।
- राज्य सहकारी समितियां संबद्ध राज्य के कानूनों के अनुसार मौजूदा एमएससीएस में विलय कर सकती हैं। हालांकि, 2002 के अधिनियम के अनुसार, एमएससीएस का विलय अन्य समितियों में किया जा सकता है या आम बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर उसे विभाजित किया जा सकता है। ऐसा प्रस्ताव उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन से पारित किया जाना चाहिए।
मुद्दे और विश्लेषण
- 2023 के संशोधन अधिनियम के अनुसार, लाभकारी एमएससीएस द्वारा वित्तपोषित कोष का उपयोग रुग्ण एमएससीएस के पुनरुद्धार के लिए किया जाएगा। परिणामस्वरूप, अच्छी तरह से कार्य करने वाली सहकारी समितियों को घाटे में चल रही सहकारी समितियों की संरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से लागत वहन करनी होगी; हालांकि, लाभकारी सहकारी समितियों पर वित्तीय बोझ डालना उचित नहीं होगा। इसके अलावा, कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत, किसी स्थापित कंपनी के लिए रुग्ण कंपनियों के पुनरुद्धार के लिए सहायता करना अनिवार्य नहीं है।
- सहकारी समितियों पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) (2009) द्वारा यह सिफारिश की गई थी कि रुग्ण इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए एक राष्ट्रीय सहकारी पुनर्वास एवं संस्थागत सुरक्षा कोष का गठन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, राज्य सरकारों को भी इस कोष में अपना योगदान देना चाहिए।
- 2023 का संशोधन अधिनियम सरकार को एमएससीएस को अपना शेयर भुनाने से रोकने की शक्ति देता है। अर्थात सहकारी समितियां केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा धारित शेयरों को उनकी पूर्वानुमति के बिना नहीं भुना सकती। यह स्वायत्तता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों का विरोध करता है, जैसा कि 2002 के अधिनियम की पहली अनुसूची में सहकारी समितियों के लिए उल्लिखित है। हालांकि, यह सरकार को सहकारी समितियों पर नियंत्रण प्रदान कर सकता है।
- एचपीसी 2009 द्वारा यह सिफारिश की गई कि सरकार को सहकारी समितियों की शेयर पूंजी में हिस्सेदारी नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि इससे इन पर सरकार का नियंत्रण हो जाएगा, जो सहकारी समितियों की स्वायत्तता छीन सकता है। इसने आगे सुझाव दिया कि सरकार अनुदान एवं ब्याजमुक्त ऋण प्रदान कर इन सहकारी समितियों की सहायता कर सकती है। भले ही प्रारंभिक शेयर पूंजी सरकार द्वारा प्रदान की गई हो, सहकारी समितियों को इसे यथाशीघ्र भुनाना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सहकारी क्षेत्र की प्रगतिशील भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। चूंकि सहकारी समितियों का कार्यक्षेत्र एलपीजी एवं पेट्रोल पंप डीलरशिप जैसे विभिन्न क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया है, इसलिए इस क्षेत्र में रोजगार की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है।
© Spectrum Books Pvt. Ltd.