पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित जैन समाज की आस्था का केंद्र श्री सम्मेद शिखर या शिखरजी, भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में स्थित एक तीर्थ स्थल है। दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग ग्रैंड ट्रंक रोड पर लगभग 4,480 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह स्थल गिरिडीह शहर से 35 किमी. दूर है।
विवाद
दरअसल, देश भर के जैन समुदाय के लोगों द्वारा पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की तथा 2021 अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2019 में जारी एक अधिसूचना में भी इस पहाड़ी पर्यटन सहित पारिस्थितिक पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का उल्लेख किया गया था। अपनी मांगों को लेकर 1 जनवरी, 2023 को जैन समुदाय के लोगों ने देश भर में
प्रदर्शन किए।
उल्लेखनीय है कि, झारखंड पर्यटन नीति 2021 में पारसनाथ को तीर्थ स्थल मानते हुए इस स्थल को धार्मिक तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित करने का उल्लेख किया गया था।
विरोध कर रहे जैन समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि यह आस्था का केंद्र है, कोई पर्यटन स्थल नहीं। इसे पर्यटन स्थल घोषित करने पर यहां होटल, पार्क आदि बनेंगे और लोग पिकनिक मनाने आएंगे। इसके कारण इस पवित्र धार्मिक स्थल की पवित्रता खंडित होगी।
आस्था की इस लड़ाई में अनशन कर विरोध जता रहे दो जैन मुनियों (मुनि सुज्ञेय सागर का 3 जनवरी, 2023 को और मुनि समर्थ सागर का 4 जनवरी, 2023 को) का देहांत हो गया। इसके बाद 5 जनवरी, 2023 को केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे पर्यटन स्थल बनाने पर रोक लगा दी, साथ ही इस मामले के संबंध में एक समिति भी बनाई गई है।
पृष्ठभूमि
शिखरजी को सम्मेद शिखर यानी ‘एकाग्रता का शिखर’ भी कहा जाता है। शब्द ‘पारसनाथ’ 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ से लिया गया है, जो उन लोगों में से एक थे जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने इस स्थल पर मोक्ष प्राप्त किया था। इस पहाड़ी को पार्श्वनाथ पर्वत भी कहा जाता है। ज्ञानीधर्मकथा के अनुसार, तीर्थ के रूप में शिखरजी का सबसे पहला संदर्भ जैन धर्म के बारह मुख्य ग्रंथों में से एक में मिलता है। शिखरजी का उल्लेख पार्श्वनाथचरित में भी किया गया है, जो कि बारहवीं शताब्दी में पारिवा की जीवनी है।
हालांकि, यहां निर्मित मंदिरों की सटीक निर्माणावधि किसी को ज्ञात नहीं है, लेकिन कुछ पुरानी पुस्तकों और पांडुलिपियों के अनुसार सम्मेद शिखर का संबंध विक्रम संवत की दूसरी शताब्दी से है और यहां स्थित 300 वर्ष पुराना बगीचा मंदिर (गार्डन टेंपल), यहां सबसे पुराना मंदिर है। विभिन्न जैन ग्रंथों के अनुसार पारसनाथ की पहाड़ी पर स्थित तीर्थ स्थल का विकास 13वीं (विक्रम संवत) शताब्दी से लेकर वर्ष 2017 तक हुआ है।
इनमें लगभग 16वीं शताब्दी में अकबरपुर के राजा मानसिंह के मंत्री श्री नानु द्वारा बनवाया गया जैनालय; 1670 में आगरा के श्री कुमारपाल से सोनपाल लोढ़ा द्वारा बनवाए गए जैनालय और 1820 से 1825 के दौरान सेठ कुशालचंद द्वारा बनवाए गए जल मंदिर जैनालय तथा मधुबन में बनवाए गए सात मंदिर प्रमुख निर्माण हैं। प्राकृतिक आपदाओं के कारण सेठ कुशालचंद द्वारा बनवाए गए मंदिरों के गिरने पर 1925 से 1933 के दौरान जैन धर्माबलंबियों द्वारा फिर से इन तीर्थों को बनवाया गया। 2012 में जैन साध्वी श्री सुप्राभासरी ने इन तीर्थों के पुनर्निर्माण तथा पुनर्सज्जा का काम शुरू करवाया था जोकि 2017 में पूरा हुआ।
इस तीर्थस्थल को जैन धर्म के दोनों पंथ—श्वेतांबर और दिगंबर—समान रूप से महत्व देते हैं।
मान्यताएं
यह स्थल झारखंड राज्य के सबसे ऊंचे पर्वत पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है। यह पौराणिक काल से ही जैन समुदाय का विश्व प्रसिद्ध और पूजनीय तीर्थ स्थल है। मान्यता के अनुसार, इस स्थान पर 24 जैन तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों द्वारा निर्वाण प्राप्त किया गया था। माना जाता है कि कुछ मंदिर 2,000 वर्ष से भी पुराने हैं।
इन पहाड़ियों को संथाल जनजाति के सदस्यों द्वारा भी पवित्र माना जाता है, जो इसे ‘मरंग बुरु’ मानते हैं और अप्रैल के मध्य में यहां एक वार्षिक उत्सव आयोजित करते हैं। साथ ही, हिंदू भी इसे आस्था का एक प्रमुख केंद्र मानते हैं।
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