सामान्यतया एक अल्पावधिक वायदा संविदा, जिसका निपटान नकद में किया जाता है, को गैर-सुपुर्दगी योग्य वायदा संविदा (Non-Deliverable Forward Contract—NDFC) कहा जाता है। चूंकि कल्पित (नोशनल) राशि कभी अंतरित नहीं की जाती, इसलिए परिसंपत्ति को ‘गैर-सुपुर्दगी योग्य’ कहा जाता है। किसी संविदागत राशि के लिए, या गैर-सुपुर्दगी योग्य वायदा (एनडीएफ) मुद्रा (करेंसी में भुगतेय) के मामले में, लेन-देन में शामिल दो पक्ष एक निर्दिष्ट दर पर अपने प्रतिपक्ष की मुद्रा लेने के लिए सहमत होते हैं। इसका तात्पर्य है कि प्रतिपक्षकारों के बीच संविदागत एनडीएफ कीमत और वर्तमान हाजिर कीमत (स्पॉट प्राइस) के बीच का अंतर तय किया जाता है। निपटान के समय सहमत दर और हाजिर दर (स्पॉट रेट) के बीच के अंतर का प्रयोग समझौते की कल्पित राशि पर लाभ और हानि का निर्धारण करने वाले कारक के रूप में किया जाता है।
डेरिवेटिव ट्रेडर्स (शेयर बाजार में विशेष प्रकार की प्रतिभूतियों, जिन्हें डेरिवेटिव्स कहा जाता है, का क्रय-विक्रय करने वाले वित्त या निवेश व्यापारी) द्वारा किसी संविदा के तहत व्यापारित परिसंपत्ति के कुल मूल्य को कल्पित मूल्य (नोशनल वैल्यू) के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह मूल्य किसी पोजिशन [एक प्रतिभूति, परिसंपत्ति या संपत्ति की वह राशि, जिसका स्वामित्व (या मंदड़िया बिक्री) किसी व्यक्ति या अन्य इकाई के पास होता है।] का कुल मूल्य, किसी पोजिशन द्वारा नियंत्रित मूल्य की मात्रा या किसी संविदा की पूर्व निर्धारित राशि हो सकता है। मूल रूप से, वित्तीय परिसंपत्तियों पर भुगतान की गणना उनके अंकित मूल्य के आधार पर की जाती है। ‘कल्पित मूल्य’ पद का प्रयोग मुख्य रूप से ऑप्शंस (एक प्रकार के अबाध्यकारी वित्तीय लिखत, जो शेयर, इंडेक्स और विनिमय कारोबार निधि जैसी अंतर्निहित प्रतिभूतियों के मूल्य पर आधारित होते हैं।), फ्यूचर्स [एक प्रकार की वायदा (व्युत्पन्न) संविदा, जिस पर दो पक्ष—क्रेता और विक्रेता—भविष्य की किसी तिथि पर अंतर्निहित परिसंपत्ति की किसी विशेष मात्रा का व्यापार करने के लिए बाध्यकारी रूप से सहमत होते हैं।], वायदा और मुद्रा बाजारों में व्युत्पन्न संविदाओं के संबंध में किया जाता है। कल्पित मूल्य, समान अंकित मूल्य है जिसका उपयोग वित्तीय परिसंपत्ति का भुगतान निर्धारित करने के लिए किया जाता है। चूंकि लीवरेज (संपत्ति और पूंजी का अनुपात) का उपयोग किया जाता है, इसलिए व्युत्पन्न संविदा का कल्पित मूल्य वास्तव में बाजार मूल्य से अधिक हो जाता है। कल्पित मूल्य एक महत्वपूर्ण कारक है जिसे निवेश सूची (पोर्टफोलियो) जोखिम को कम करने के लिए बचाव अनुपात [हेज रेशियो—संरक्षित पोजिशन के मूल्य और समग्र पोजिशन के आकार का तुलनात्मक मान] निर्धारित करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। ब्याज दर की अदला-बदली (इंटरेस्ट रेट स्वैप—वायदा संविदा, जिसमें किसी निर्दिष्ट मूल राशि पर आधारित भविष्य के ब्याज भुगतान के किसी खंड को दूसरे के साथ बदला जाता है), कुल प्रतिलाभ स्वैप (टोटल रिटर्न स्वैप एक प्रकार का अनुबंध है, जिसके माध्यम से दो पक्ष किसी परिसंपत्ति पर प्राप्त प्रतिलाभ का आदान-प्रदान करने के लिए सहमत होते हैं।), इक्विटी ऑप्शंस और विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स सभी कल्पित मूल्य के अधीन हो सकते हैं।
वायदा संविदा
वायदा संविदा एक व्युत्पन्न संविदा है जिस पर दो पक्षों के बीच किसी संपत्ति के क्रय या विक्रय हेतु भविष्य की किसी निश्चित तारीख पर सहमत मूल्य के लिए समझौता किया जा सकता है। व्यापार की जाने वाली वस्तुएं—अनाज, बहुमूल्य धातुएं, प्राकृतिक गैस, तेल, मुर्गीपालन आदि हो सकती हैं। वायदा संविदाओं का निपटान नकद या वितरण के आधार पर किया जा सकता है। ऐसी संविदाएं लचीली होती हैं और इन्हें किसी विशेष वस्तु, राशि और वितरण की तारीख के लिए अनुकूलित किया जा सकता है। एनडीएफ को ओवर-द-काउंटर [ओटीसी—किसी केंद्रीकृत विनिमय केंद्र के विपरीत, ब्रोकर (दलाल) और डीलर (व्यापारी) के समूह द्वारा प्रतिभूतियों के व्यापार की प्रक्रिया) लिखत माना जाता है जैसा कि इनका कारोबार केंद्रीकृत एक्सचेंज पर नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए, वायदा संविदाओं का उपयोग कृषि उत्पादों के उपयोगकर्ताओं द्वारा अंतर्निहित परिसंपत्तियों या वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन के विरुद्ध बचाव (हेज) करने में मदद प्राप्त करने हेतु किया जा सकता है। सामान्यतया नियमित रूप से मार्क-टू-मार्केट (बाजार मूल्य को बही में अंकित करने की एक प्रक्रिया, जिसमें अंतर्निहित परिसंपत्ति के मूल्य में परिवर्तन के कारण होने वाले लाभ या हानि को निर्धारित करने के लिए, व्यापारी प्रत्येक दिन के अंत में खुली वायदा संविदाओं का पुनर्मूल्यांकन करते हैं) की जाने वाली संविदाओं की तुलना में वे वित्तीय संस्थान, जो वायदा संविदा शुरू करते हैं, निपटान और चूक (डिफॉल्ट) जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। चूक जोखिम के प्रति उनकी संभावना और केंद्रीकृत समाशोधन प्रतिष्ठान (वित्तीय बाजार में किसी क्रेता एवं विक्रेता के बीच एक नामित मध्यस्थ) की कमी के कारण, खुदरा निवेशकों के लिए भविष्य की संविदाओं की तुलना में वायदा संविदा कम सुलभ होती हैं।
एनडीएफ की तुलना एक मानक वायदा विदेशी विनिमय संविदा से की जा सकती है। हालांकि, परिपक्वता पर, यह किसी भी ऐसी मुद्रा के वास्तविक वितरण की मांग करती है, जिस पर संबद्ध पक्षों के बीच सहमति होती है। यह निपटान तारीख पर एक विशिष्ट मुद्रा का क्रय या विक्रय उस मूल्य पर करने की प्रतिबद्धता है जिस पर संविदा की तारीख या व्यापार की तारीख पर पक्षों के बीच सहमति हुई हो।
भारत में एनडीएफ बाजार
मार्च 2020 में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारत में ऐसे बैंकों को 1 जून, 2020 से एनडीएफ बाजार में भाग लेने की अनुमति देने का निर्णय लिया जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी) बैंकिंग इकाइयों (आईबीयू) का संचालन करते हैं। (आईबीयू एक ऐसा बैंक है जिसे आरबीआई द्वारा आईएफएससी की ओर से संचालित करने की अनुमति प्राप्त है।) इससे बैंकों को आईएफएससी में विदेशी संस्थाओं के साथ परस्पर एनडीएफ संविदाओं का व्यापार करने का लाभ मिला। जून 2020 से, भारत में आईबीयू वाले बैंकों को अनिवासियों, बैंकों और आईबीयू वाले अन्य पात्र बैंकों के साथ भारतीय रुपये में गैर-सुपुर्दगी योग्य विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न संविदाओं में लेन-देन करने की अनुमति दी गई थी।
वास्तव में, आरबीआई द्वारा गठित टास्क फोर्स ने ऑफशोर रूपी मार्केट्स (विदेशी रुपया बाजार) पर प्रस्ताव दिया था कि भारतीय बैंकों को एनडीएफ में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हालांकि, आरबीआई ने इस मुद्दे के सभी पहलुओं की विस्तार से जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मूल्य निर्धारण (प्राइस डिस्कवरी—क्रेता और विक्रेता की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप बाजार मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया) की दक्षता में सुधार के लिए स्थानीय (ऑनशोर) बाजार और विदेशी (ऑफशोर) बाजारों के बीच की विषमता को समाप्त करना उचित था।
अप्रैल 2023 में, आरबीआई ने घोषणा की कि वह आईएफएससी बैंकिंग इकाइयों वाले बैंकों को स्थानीय निवासियों के लिए भी भारतीय रुपये से जुड़ी गैर-सुपुर्दगी योग्य विदेशी मुद्रा से व्युत्पन्न संविदाओं को पेश करने की अनुमति देगा। आरबीआई नए एनडीएफ ढांचे के लिए दिशानिर्देश भी तय करेगा। यह स्पष्ट करेगा कि क्या निवासियों को विदेशी मुद्रा रखने का प्रमाण देना होगा। आरबीआई के अनुसार, ओटीसी में हेजिंग (बचाव अर्थात हेजिंग का उपयोग प्रतिकूल मूल्य गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले वित्तीय जोखिमों को कम करने के लिए किया जाता है।) के लिए जो शर्तें वर्तमान में मौजूद हैं वही एनडीएफ के लिए भी लागू होंगी। वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार, ओटीसी बाजार तक पहुंच प्राप्त करने के लिए बैंकों में विदेशी मुद्रा रखने के साक्ष्य जमा करने होंगे।
एनडीएफ में पहुंच के विस्तार की आवश्यकता का उद्देश्य एक ऐसे बाजार के लिए मार्ग प्रशस्त करना है जो ओटीसी बाजार के निर्धारित कार्यकारी समय (ओटीसी आवर) से अधिक समय के लिए उपलब्ध हो और जो हेजिंग के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करे। इसके अतिरिक्त, यह बैंकों को अपने ग्राहकों को मुद्रा की हेजिंग करने के अधिक अवसर प्रदान करने में सक्षम बनाएगा। इससे ऑनशोर-ऑफशोर मध्यस्थता को व्यापक स्तर पर बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, इससे निगमों को यह विकल्प मिलेगा कि वे केवल हेजिंग कर सकते हैं और वितरण न ले या दे सकते हैं।
भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और यह भारत के निरंतर वित्तीयकरण का एक और उदाहरण है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की स्थिरता बनाए रखने हेतु आरबीआई के लिए यह एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हो सकता है।
एनडीएफ की कमियां
निवल अंतर का भुगतान करते समय मुद्रा बाजारों में होने वाला कोई भी प्रतिकूल परिवर्तन एनडीएफ द्वारा संरक्षित नहीं है। जब एनडीएफ में उभरते बाजारों और प्रमुख मुद्राओं वाले बाजारों की मुद्राएं शामिल होती हैं तो बाजार में अनिवार्य रूप से चलनिधि (या नकद) कम होती है और वे उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। ऐसे हालातों में, कोई भी व्यक्ति या निकाय हाजिर दर (स्पॉट रेट) में वृद्धि से लाभ उठाने में असमर्थ होगा, और निरसन या संशोधन के कारण उसे लागत का वहन करना पड़ सकता है।
वायदा संविदाएं और भावी संविदाएं
वायदा और भावी संविदाएं दोनों में ही भविष्य में एक निर्धारित मूल्य पर पण्य (जिंस) के क्रय या विक्रय का समझौता सम्मिलित होता है। यद्यपि भावी संविदाओं के विपरीत, वायदा संविदाओं का कारोबार एक केंद्रीकृत विनिमय केंद्र में नहीं किया जाता है। वायदा संविदा का निपटान संविदाओं के अंत में होता है, जबकि भावी संविदाओं का निपटान दैनिक आधार पर किया जाता है। इसके अलावा, भावी संविदा दो प्रतिपक्षों के बीच अनुकूलित नहीं होती और ये मानकीकृत संविदाओं के रूप में मौजूद होती हैं।
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