अनिवार्य संपरिवर्तनीय ऋणपत्र (CCD—Compulsorily Convertible Debenture) एक प्रकार का बॉण्ड है जिसके लिए एक निर्दिष्ट अवधि में, ऋणपत्र के संपूर्ण मूल्य को शेयरों (अंशों) में संपरिवर्तित किया जाना आवश्यक होता है। CCDs वित्तपोषण के महत्वपूर्ण साधन हैं जिस पर व्यवसाय निधि एकत्रित करने हेतु आश्रित होते हैं।
निगम वित्त में, ऋणपत्र एक मध्यावधिक से दीर्घावधिक ऋण प्रपत्र (debt instrument) है जिसका उपयोग बड़े संगठनों द्वारा निश्चित ब्याज दर पर धन उधार लेने के लिए किया जाता है। संगठनों द्वारा ऋणपत्रों के माध्यम से जुटाया गया धन संगठन की पूंजीगत संरचना (Capital Structure) का एक हिस्सा बन जाता है; हालांकि, यह शेयर पूंजी नहीं होती है। ऋणपत्र धारक अपने ऋणपत्र का स्वतंत्र रूप से अंतरण कर सकते हैं तथापि, उनके पास शेयरधारकों की आम सभा की बैठकों में वोट देने का अधिकार नहीं होता है। ऋणपत्र धारकों को प्रदत्त ब्याज, कंपनी के वित्तीय विवरणों में लाभ पर देय एक प्रभार (चार्ज अगेंस्ट प्रॉफिट) होता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 71 और कंपनी (शेयर पूंजी और डिबेंचर) नियम, 2014 के नियम 18 ऋणपत्र से संबद्ध हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 71(1) संगठनों को मोचन के समय पूर्ण या आंशिक रूप से शेयरों में परिवर्तित करने के विकल्प के साथ ऋणपत्र निर्गमित करने की अनुमति देती है। हालांकि, इसे CCD निर्गमित करने वाली कंपनी द्वारा एक आम सभा में पारित विशेष प्रस्ताव द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 42 के तहत, कंपनियों के पास निजी तौर पर प्राइवेट स्थापन प्रस्थापना पत्र (private placement offer letter) जारी करने के माध्यम से CCDs निर्गमित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है।
CCDs के लाभ
जब इन प्रपत्रों को निर्गमित किया जाता है, तो निर्गम करने वाले संगठन CCDs निर्गमित करने के समय CCD संपरिवर्तन अनुपात निर्धारित करते हैं। इनमें एक निश्चित समयावधि के बाद या किसी विशिष्ट घटना के घटित होने पर इक्विटी में अनिवार्य संपरिवर्तन की अंतर्निहित विशेषता होती है। CCD एक संकर (हाइब्रिड) लिखत है, जिसका अर्थ है कि इसे न तो प्योर डेब्ट—( अर्थात शुद्ध ऋण किसी भी लाभ या मूल्य में वृद्धि के सहभाजन के बिना उधार चुकाने का दायित्व) या बॉण्ड और न ही प्योर इक्विटी (एक प्रकार का निवेश, जिसमें मुख्य रूप से इक्विटी प्रतिभूतियां शामिल होती हैं।) या स्टॉक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। CCDs की यह संपरिवर्तनीय विशेषता, निवेशकों के लिए ब्याज से प्राप्त आय के अतिरिक्त एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती है। CCDs के साथ, निवेशक संपरिवर्तन पर संभावित लाभ होने के साथ-साथ एक नियत प्रतिफल प्राप्ति के संबंध में सुनिश्चित होते हैं। और, CCD धारकों को अनिवार्य संपरिवर्तनीय ऋणपत्र की अवधि पूर्ण होने पर प्रतिदान (रिफंड) के बजाय संबद्ध संगठन के शेयर स्वीकार करने होंगे।
यद्यपि CCDs को सामान्यतया इक्विटी माना जाता है, तथापि ये ऋण की तरह सुनियोजित होते हैं। यदि निवेशक CCDs को बेचना चाहे, तो इन्हें निर्गमित करने वाली कंपनी इसे निवेशक से एक नियत कीमत पर वापस खरीद लेगी। चूंकि CCDs एक नियत समय के बाद इक्विटी में संपरिवर्तित हो जाते हैं, इसलिए ये इन्हें निर्गमित करने वाली कंपनी के लिए ऋण जोखिम (credit risk) पैदा नहीं करते हैं। अंतर्निहित स्टॉक के आधार पर प्योर इक्विटी का निर्गमन किया जा सकता है, क्योंकि इन्हें तुरंत शेयर में संपरिवतर्तित नहीं करना होता है; तथापि, CCDs कुछ अधोमुखी दबाव को कम करते हैं।
कर प्राधिकारी की संवीक्षा (Taxman’s Lens) में मॉरीशस, सिंगापुर और साइप्रस के निवेशक
भारतीय कंपनियों द्वारा निर्गमित CCDs में निवेश से लाभ प्राप्त करने पर मॉरीशस, साइप्रस और सिंगापुर के कई विदेशी निवेशकों को एकाधिक नोटिस भेजे गए हैं। 2017 में, भारत में शेयरों पर प्राप्त पूंजीगत अभिलाभ पर कर लगाने के लिए मॉरीशस, साइप्रस और सिंगापुर की कर संधियों में संशोधन किया गया था। कर संधियों के बाद CCDs की, जिन्हें एक नियत अवधि के बाद अनिवार्य रूप से इक्विटी में संपरिवर्तित किया जाता है, लोकप्रियता में वृद्धि हुई थी।
बेचे जा रहे इन प्रपत्रों के स्वरूप/प्रकार से असंगत, कर प्राधिकारियों का मत है कि कर निवासी (tax resident—व्यक्ति जो भारत में एक कर वर्ष में 182 या अधिक दिनों की समयावधि तक निवास करता है, या एक कर वर्ष में 60 दिनों तथा इससे पहले के कुल चार कर वर्षों के दौरान 365 या अधिक दिनों तक (प्रत्येक कर वर्ष में कम से कम 60 दिनों तक रहना अनिवार्य) निवास करता है।) को प्राप्त होने वाले पूंजीगत लाभ अब भारत में कर योग्य हैं। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है जैसा कि कर प्राधिकारियों का दावा है कि सभी पूंजीगत अभिलाभ कर योग्य हैं; हालांकि, विदेशी निवेशकों का मानना है कि शेयरों के अलावा अन्य प्रतिभूतियों का विक्रय कर-रहित रहेगी।
2017 में कर संधियों में संशोधन के बाद, शेयरों से प्राप्त होने वाला पूंजीगत अभिलाभ भारत में कर योग्य है। हालांकि, ऋणपत्र जैसे ऋण प्रपत्र इस संशोधन के सीमाक्षेत्र में नहीं हैं और कर-योग्य नहीं हैं। उदाहरण के लिए, ऋणपत्र, CCDs आदि अभी भी कर संधियों में अवशिष्ट खंड के अंतर्गत आते हैं। 2017 में कर संधियों में किए गए संशोधन के अनुसार, इन प्रपत्रों पर अभिलाभ केवल उन्हीं देशों में कर-योग्य होगा जहां इन प्रपत्रों के निवेशक रहते हैं। इसका तात्पर्य है कि भारत में, निवेशक अपने पास मौजूद किन्हीं ऋण प्रपत्रों के लिए किसी भी पूंजीगत अभिलाभ कर का भुगतान करने के लिए दायी नहीं है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के दिशा-निर्देश के अनुसार, CCDs भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को प्रतिवेदन देने के प्रयोजन से इक्विटी की तरह हैं। तथापि, CCDs को आय कर के प्रयोजन के लिए तब तक ऋण प्रपत्र माना जाता है जब तक कि इन्हें इक्विटी में संपरिवर्तित नहीं कर दिया जाता है। ऐसे निवेशक हो सकते हैं जो CCDs को किसी अन्य सहायक पक्षकार (friendly third party) को बेचते हैं जब CCDs की अवधि समाप्त होने वाली होती है। इसके बाद उस निधि या फंड पूंजीगत अभिलाभ का निर्धारण (treatment of capital gains—कर संहिता द्वारा निर्धारित निवेश पूंजीगत अभिलाभ पर विशिष्ट कर) और संधि के तहत छूट का दावा किया जाता है।
भारत के न्यायालयों के अनुसार, आय कर कानूनों और आरबीआई के तहत किसी प्रपत्र का वर्गीकरण समान होना जरूरी नहीं है। कर विभाग द्वारा, संधियों में संशोधन से बहुत पहले, CCDs के विक्रय से प्राप्त लाभ को ब्याज से प्राप्त आय के रूप में मानने के प्रयास किए गए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2014 में कहा था कि CCDs से प्राप्त लाभ को पूंजीगत अभिलाभ के रूप में माना जाना चाहिए।
भारत-मॉरीशस संधि के अनुसार, भारत में CCDs पर 7.5 प्रतिशत कर लगता है और भारत-सिंगापुर संधि के अनुसार, कर की यह दर 15 प्रतिशत है। निवेशक आशंकित हैं कि कर प्राधिकारी विभिन्न साधनों का उपयोग और इन संव्यवहारों के लिए सामान्य परिवर्जन-रोधी नियम (GAAR) लागू करेंगे। (GAAR—एक अवधारणा है जो सामान्यतया किसी देश के राजस्व प्राधिकरण को उन संव्यवहारों या व्यवस्थाओं के कर लाभ से इनकार करने की शक्ति प्रदान करती है जिनके पास कोई वाणिज्यिक पूंजी नहीं है।) ऐसे संव्यवहारों का एकमात्र उद्देश्य कर लाभ प्राप्त करना है। GAAR की आवश्यकता सामान्यतया इस महत्व से न्यायसंगत है कि कर व्यवस्था की अखंडता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
शेयरों के समान, CCDs संपरिवर्तनीय प्रपत्र हैं जिनका चयन केवल कर प्रयोजनों हेतु किया जाता है। इसलिए, निवेशक वैध रूप से CCDs का उपयोग करते हैं और संपरिवर्तित होने तक इक्विटी धारक को प्राप्त अधिकार उनके पास नहीं होते हैं।
निष्कर्ष
कर संधि लाभ का दावा करने और ऋण प्रपत्रों पर प्राप्त पूंजीगत अभिलाभ पर कर छूट का दावा करने के लिए निवासी देश में धन-संपत्ति को प्रदर्शित करना महत्वपूर्ण है। CCDs में विदेशी निवेशकों को प्राप्त नोटिस देश के कानून के अनुसार विधिसम्मत हो सकते हैं। तथापि, यह एक अच्छा संकेत नहीं है जैसा कि भारत सरकार बार-बार भारत में व्यापार करने में सुगमता के लिए कदम उठाती रही है क्योंकि यह विदेशी निवेशकों के लिए एक स्थिर और टकराव-रहित कर व्यवस्था प्रदान करेगी।
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