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‘शान्तिनिकेतन’ यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल

सितंबर 2023 में सऊदी अरब के रियाद में यूनेस्को की विश्व विरासत समिति के 45वें अधिवेशन के दौरान पश्चिम बंगाल में नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर के निवास-स्थान ‘शान्तिनिकेतन’ को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान दिया गया है। यह भारत का 41वां यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है। पश्चिम बंगाल में सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान और दार्जिलिंग माउंटेन रेलवे के बाद, शान्तिनिकेतन तीसरा यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है। यूनेस्को ने 2022 में पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया था।

शान्तिनिकेतन को विश्व विरासत सूची में शामिल करने की अनुशंसा फ्रांस स्थित अंतरराष्ट्रीय निकाय—इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स (ICOMOS) द्वारा की गई थी, जो यूनेस्को विश्व विरासत केंद्र की परामर्शी संस्था है, तथा वैश्विक वास्तुकला एवं विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी समर्पित है। शान्तिनिकेतन, ऐतिहासिक भवनों, भू-दृश्यों एवं उद्यानों, मंडपों तथा कलाकृतियों का एक संयोजन है जिसने शैक्षिक और सांस्कृतिक परंपराओं को जारी रखा है जो संयुक्त रूप से इसके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को व्यक्त करती हैं। जैसा कि यूनेस्को द्वारा व्याख्या की गई है, ‘‘शान्तिनिकेतन बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, कलाकारों, शिल्पकारों और श्रमिकों के एक अंतस्थक्षेत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्होंने भारत की प्राचीन, मध्ययुगीन एवं लोक परंपराओं के साथ-साथ जापानी, चीनी, फारसी, बाली, बर्मी और आर्ट डेको शैलियों से आकर्षित अंतरराष्ट्रीयता पर आधारित एशियाई आधुनिकता के साथ सहयोग और प्रयोग किया’’। (आर्ट डेको सजावट और वास्तुकला की एक शैली है जो 1920 और 30 के दशक में प्रचलित थी।)

यूनेस्को ने शान्तिनिकेतन को राष्ट्रीय महत्व की संस्था भी घोषित किया और इसके विधिक ढांचे एवं प्रबंधन प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ करने की अनुशंसा की। इसके अलावा, इस परिसंपत्ति की सीमा के भीतर किसी भी नए विकास कार्य को मंजूरी नहीं दी जाएगी, और सभी संरक्षण परियोजनाओं की देख-रेख विश्व भारती विरासत समिति द्वारा की जाएगी। इस कार्य को धरोहर समिति के उत्तरदायित्वों हेतु एक दिशानिर्देश तैयार कर अधिक सुदृढ करने की आवश्यकता होगी तथा सुनिश्चित किया जाए कि प्रचालनात्मक दिशानिर्देशों से सुसंगत धरोहर समिति के लिए धरोहर प्रभाव आकलन (हेरिटेज इम्पैक्ट एसेसमेंट) तैयार किए गए हैं।

विश्व विरासत सम्मेलन, जिसे यूनेस्को द्वारा 1972 में अपनाया गया था, ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय स्थानों को उनके सार्वभौमिक मूल्य और उनके संरक्षण में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को पहचानकर भविष्य की पीढ़ियों के लिए उन्हें सुरक्षित रखने हेतु कड़ी मेहनत कर रहा है। यूनेस्को विश्व भर में मानवता के लिए उत्कृष्ट निधि माने जाने वाले सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक धरोहरों की पहचान, सुरक्षा और संरक्षण को प्रोत्साहित कर रहा है।

शान्तिनिकेतन के बारे में

रमणीय और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शान्तिनिकेतन (शांति का निवास) की स्थापना 1901 में प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक, गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गई थी। भारत की प्राचीन परंपराओं के आधार पर शान्तिनिकेतन को एक आवासीय विद्यालय और कला केंद्र के रूप में शुरू किया गया था। उस समय इसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता था।

1921 में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना शान्तिनिकेतन में की गई थी और इसे ‘विश्व भारती अधिनियम, 1951’ द्वारा एक केंद्रीय विश्वविद्यालय घोषित किया गया था। विश्वभारती को राष्ट्रीय महत्व की संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसे अपने एकात्मक शिक्षण के लिए जाना जाता है।

शान्तिनिकेतन अखिल एशियाई आधुनिकता के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जो संपूर्ण क्षेत्र की प्राचीन, मध्ययुगीन और लोक परंपराओं पर आधारित है, तथा यह 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद और यूरोपीय आधुनिकतावाद की प्रमुख वास्तुकला शैलियों के विपरीत है। शान्तिनिकेतन का दृष्टिकोण धार्मिक एवं सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता की एकता रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के विरासत टैग हेतु भारत का दस्तावेज

अभिलेख के लिए उपयुक्त विशिष्ट नामांकन को तर्कसंगत ठहराने के लिए भारत द्वारा प्रस्तुत नामांकन दस्तावेज (डोजियर) के अनुसार, यह उल्लेख किया गया कि शान्तिनिकेतन हमेशा से रबीन्द्रनाथ टैगोर तथा उनके सहयोगियों के, जो बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट और आरंभिक भारतीय आधुनिकतावाद के प्रवर्तक हैं, विचारों, कार्यों एवं दृष्टिकोण से सीधे और मूर्त रूप से संबद्ध रहा है।

यूनेस्को विश्व विरासत सम्मेलन के लिए भारत का दस्तावेज कोलकाता के सिस्टर निवेदिता विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग के प्रमुख, प्रोफेसर मनीष चक्रवर्ती तथा प्रसिद्ध संरक्षण वास्तुकार आभा नारायण लांबा दोनों ने मिलकर तैयार किया था। दस्तावेज को पूरा करने में दो वर्ष लगे, और यह 2010 में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज पर आधारित है। प्रोफेसर चक्रवर्ती को दस्तावेज के साथ इस स्थल (साइट) की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक स्थल प्रबंधन योजना भी प्रस्तुत करनी थी। दस्तावेज के अनुसार, शान्तिनिकेतन ‘‘ऐसे बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, कलाकारों, शिल्पकारों और श्रमिकों के एक अग्रगामी (अवांट-गार्डे) अंतस्थक्षेत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्होंने—स्थापित यूरोपीय औपनिवेशिक प्रतिमानों से मुक्त होकर—एक अद्वितीय वास्तुकला भाषा को बढ़ावा देने और कला, वास्तुकला, भू-दृश्य, परिणाम की परिकल्पना और नगर नियोजन में नए आधुनिकतावाद की शुरुआत करने के लिए सहयोग और प्रयोग किया’’।

दस्तावेज में जर्मन कला विद्यालय बॉहॉस और जापान की परंपरा मिंगेई के साथ शान्तिनिकेतन की समानताओं का भी उल्लेख किया गया। बॉहॉस और शान्तिनिकेतन की स्थापना एक ही समय में हुई थी। हालांकि, शान्तिनिकेतन का पर्याय आधुनिकता और अंतरराष्ट्रीयता का प्रतीक है, जो बॉहॉस के अतिगंभीर शुद्धतावाद से बिलकुल अलग है। शान्तिनिकेतन के कला विद्यालय ने रूमानी मानवतावाद को अपनाया जो व्यापक और चंचल था। यह अभिकल्पना (डिजाइन) के एक ऐसे पहलू को निरूपित कर रहा है जो ब्रिटेन में कला एवं शिल्प आंदोलन, जापान में मिंगेई तथा ऑस्ट्रिया में वियना सिसेशन (1897 में स्थापित वियना सिसेशन कलाकारों, वास्तुकारों और डिजाइनरों के समूह को दिया गया नाम था, जिन्होंने वियना के कलाकारों के मुख्य संगठन से अलग होकर अपना एक पृथक समूह बनाया। इस समूह का लक्ष्य नई, प्रगतिशील कला का सृजन करना था) जैसे आंदोलनों के समान है।

स्थल प्रबंधन योजना के अनुसार, भारत ने शान्तिनिकेतन का कुल क्षेत्रफल 36 हेक्टेयर दर्ज किया है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित और संवर्धित किया गया है। इसमें 537 हेक्टेयर का एक प्रतिरोधक क्षेत्र (बफर जोन) भी है जिसे किसी भी प्रकार की निर्माण गतिविधियों के लिए एएसआई द्वारा विनियमित किया जाएगा।

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2023 में शामिल किए गए अन्य विश्व विरासत स्थल

शान्तिनिकेतन के अलावा, जिन अन्य स्थानों को यूनेस्को के प्रतिष्ठित विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान दिया गया है, उनमें फिलिस्तीन में स्थित प्राचीन जेरिको; ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान में सिल्क रोड का जराफशान-काराकुम कॉरिडोर; इथियोपिया में गेडियो सांस्कृतिक भू-दृश्य; और चीन के पुएर में जिंगमई पर्वत के प्राचीन चाय के जंगलों का सांस्कृतिक भू-दृश्य शामिल हैं।

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